________________
पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३५१ जाने मंत्री अने सामंतोयें रूपवंत अने गुणवान् एवी घणीक कन्याउ पर गावी आपी, अने ते गाममांथी ते यदना नयथी आडी अवली जागी ग येली सर्व प्रजा पण सारो राजा थवाथी पानी आवी वसी. त्यार पड़ी ते राजकुमार, मुने कहेवा लाग्यो के हे मित्र ! था राज्य मने तमारा संगना प्रतापथी मन्युं , माटे तमेंज ग्रहण करो. त्यारें में कडं जे हे सत्त्ववान् ! एम न बोलो. कारण के जे या राज मल्यु , ते तो तमारा नाग्ययोगेंज मल्युं . एमां मारो शो प्रताप ले ? माटे हे श्रेष्ठपुरुष ! या राज्य जोग ववानो खरो हक्क तो तमारोज ले. वली पण सांजलो, के या राज्य काहिं तमोयें कोठें कपटबलथी बीनवी लीधुं नथी? या तो तमारा नाग्योदयें प्रेरेला यदेंज अत्याग्रहपूर्वक प्राप्यु ले. माटे तमो स्वस्थ चित्त थइने जोगवो. अने दूं, जे मित्रने तमें शोधवा निकट्या बो, तेने शोधवा सारु जावं, माटे ते मित्रनां नाम, गोत्र, कुल, रूप वगेरे कहो, के जेथी हूं जलदी तेने शोधी लावु ? पड़ी तेणें तेनां गिरिसुंदर एवं नाम तथा गोत्र कुल प्रमुख कही आप्यां. ते पनी ढुं तेनां नाम वगेरेने बराबर याद राखी अनेक देशावरने विपे तेने शोधवा माटे जम्या करूं मुं. तेमां जे कोइ मने रस्तामां के बीजे कोइ ठेकाणे मले ,तेने पूडं . के तमें धावा गोत्र कुल रूपवालो गिरिसुंदरनामा कुमार दीतो ? तो पण हजी सुधीमने क्याहिं पण तेनो पत्तो मल्यो नथी. माटे हे पांयजनो! तमोने पण पूलु डं; के तमो पण अनेक गाम नगर, वन पर्वतो जोता जोता आवता हशो, तो तेमां तमोयें को पण ठेकाणे पुंद्रपुरना राजानो, गिरिसुंदर नामा पुत्र दीठो बे ? त्यारे सद को बोल्या के ना, ना. अमें क्यांही दीठो नथी. ते सांजली मनमां क्लेश पामी पालो महसेन बोल्यो के हे पांथजनो! ढुं तेनो अटलो बधो शोध तो नहीं करत, परंतु हाल जे उजडगाम वसावी राज्यासन पर वेवेलो मारो मित्र राजकुमार , ते स्वनावथी घणोज उत्तम ले.अने उत्तम एवा ते राजकुमा रने गिरिसुंदर विना मोहोटुं दुःख थाय . ते केवु दुःख थाय ? के तेने मनोहर एवं राज्य मन्यु जे, परंतु ते गिरिसुंदर विना तेने राज्य पण रज्जुसमान देवाय ले. अने विषयनोगो जे ,तेने रोगो समान माने जे, अने गीत विनोदने पण ते विलापतुल्य माने जे. अने हास्यजीला तो तेने जरा पण गमतीज नथी. अहोनिश मोहोटो निःश्वास मूकी, हे