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________________ ४३२ जैनकथा रत्नकोप नाग सातमो. " जान थायुं, त्यारें हाकी बाकी थी. ने चोतरफ जोवा लागी. अने ज्यां जुवे, त्यां तो सर्वत्र उजडवनज दीतुं. ते जोइने जयजीत थर थकी कवा लागी के घरे या शुं ! हुं मारा महेलमां सूती हती, त्यांथी वली चाहिं क्यां यावी ! रे या ते गुं इंइजान हो ! के या ते मनें नम थयो ! केा ते मने स्वप्न याव्यं बे ! अरे मनोहर एवो माहारो महेल क्यां गयो ! श्रने जेमां जाजा हिंसकजीवो रहे बे, तेवुं या जयंकर वन क्यांथी व्युं ! अरे मने हिं कोण लाव्युं हो ! ते लावनार पण केम दे खातुं नथी. हा !!! हवे हुं केम करूं ! क्यां जावं ! कोने कर्तुं ! हे स्वा मीनाथ ! तमें क्या हो ? जो याहिं हो, तो तमारी प्राणप्रिया हुं तलखुं बुं, तेने उत्तर केम नथी आपता ? हवे जो उत्तर न यापो, तो तमने मारा शपथ ले ! ने हे प्राणनाथ! हे प्राणपते ! तमो जीवतां बतां विनापराध मने यावा विकटवनमां को नाखी ? हा ! पापिष्ट एवी में पूर्वजवें कांक पाप कर्मनुं श्राचरण कर हरो, जेथी मने अणधार ने विचार दा रु दुःख यावी पड ! ग्राम विविध प्रकारना विलाप करती, ने रात्रि पडवाथी चोतरफ फरता एवा सिंहप्रमुख हिंसक प्राणीयोना शब्दयी कंपा यमानयतीने वारंवार " नमोप्रयः " एम बोलती, करमाइ गयुं बे मुख जेनुं एवी ते राणी, त्यांथी एकदम उनी थइ. ने पी विचारका लागी के हवे हुंक्यां जानं ? अरे ! यहिं निर्नयरीतें रहेवाय, एवं कयुं ठेकाएं बे ? एम चिंतायें करी व्याकुल यती थकी मुंजाइने त्यांज पडी रही. पढी सवार पडवाथी दक्षिण दिशाना मार्ग तरफ चालवा लागी. त्यां सिंह, त्याघ्र, सुकर, शीयालियां, तेना जयंकर शब्दोथी कंपायमान बे चित्त जेनुं ने सूर्यना तापथी तपेली वेलुमा तपी गया बे पग जेना, अने पगमां कांटा वागवाथी जेने घणुंज रुधिर चाल्युं जाय बे, एवी ते राणी, शून्यवनमां पोतें अत्यं त कोमलांगवाली होवाथी मूर्छा पामी गइ पढी थोडी वारें शीतलपवन श्राववाथी पाठी सावधान थइ, विचारवा लागी के हो ! में पूर्वजवें प्रज्ञानना योगथी घणांज घोर पाप कस्यां दशे, एम लागे बे ? कारण के जे पापना विपाकरूप था दुःखने ढुं श्रहिं प्रत्यक्षरीतें जोगवुं हूं. अने जिन शास्त्रमां लखेनुं बे के प्राणीमात्रने शुभाशुभ कर्मोनो लोग तो जोगव वोज पडे बे, माटे पोतानां करेलां कर्मने जोगववां पडे, तेमां यापले
SR No.010252
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size66 MB
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