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________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. ३१५ बे. जैम के कोई एक महोटा वनमां अनेक वृदो बे खरां, परंतु जे वृक्षने सुगंधित पुष्पो लागेलां होय छे, तो ते वृथीज ते वन सुगंधित कवाय बे, तेम जिनमतरूप महावनने विषे पुण्यकारक बीजी क्रियारूप वृको तो घांबे, परंतु एक सम्यकरूप जे कुसुमित वृद्ध बे, ते वृक्ष सारनूत बे. वली या जिनमतना शास्त्रमां तत्त्वश्रद्धान तो एटलुंज कहेलुं बे, के कोइ पण प्राणीने क्यारें पण हणवो हणाववो नहिं. माटे हे मित्र ! या जिनधर्म बे, ते पूर्वोक्त सर्वरीतथी मोक्षदायकज बे. एम तमारें निवें करी जाए j. या प्रकारें रूपांतरधारी हरिवेगना मुखथी शुद्ध एवा न्मतना गु गोनी स्तुति सांजली पद्मोत्तर कुमार तो परम आनंदने प्राप्त थयो. त्यारें वली रूपांतरधारी हरिवेग कहेवा लाग्यो, के के कुमार ! जे धर्मना प्रजावथ । गया जब मां व्यापणे वे हुयें प्रथम ग्रैवेयकमां देवता य३ त्यांनुं सुख जोगव्युं हतुं, ते तमने सांजरे बे, के जूली गया? वली त्यां श्रावसो प्रतिमायें युक्त, मणि यने रत्न, तेणें जडित, एक सिद्धायतन नामनुं वैमान आपने प्राप्त थयुं हतुं, ने तेमां बेसीने यापें श्रावसो प्रतिमानुं वंदन करयुं हतुं, ते पण आपने सांरतुं नयी शुं ? वली या प्रकारना सुखदायक एवा धर्मने पूर्व वोथी जाणो तो बो, परंतु श्रादरता शा माटे नयी ? आवां पोताना पूर्वन वना मित्र हरिवेगनां वचन सांजलीने उत्पन्न ययुं बे, जातिस्मरण ज्ञान जे ने एवो ते पद्मोत्तर कुमार, प्रह्लादित थइ कहेवा लाग्यो के ग्रहो ! या केतुं मनोहर ज्ञानदान ! अहो ! या केवो वली मारी पर दृढस्नेह ! य हो ! या केतुं यापनुं परोपकारीपणुं ! हो ! में पण हाल जाएयुं, के ग या जन्ममां ज्यारें हुं सुरसेन कुमार हतो, त्यारें याप मुक्तावली नामा स्त्री हता, ते मुक्तावली थयेला श्राप मारी साथै ग्रैवेयक लोकने विषे य हमिं देव थ त्यांथी चवीने हाल हरिवेग नामा विद्याधर थया बो, अने वली मारी साथै पूर्वना घणाक नवोनी मित्रता होवाथी मायायें करी मा जरि वेचनारा पुरुष जेवुं रूप लइने मने बोध देवा माटें याव्या हो ? तो हवे हे मित्र ! ते मायाकृत रूपने बोडी दइने आपनुं खरूं स्वरूप मने बतावो . ते सांजली रूपांतरधारी हरिवेगें जे पोतानुं खरं रूप हतुं ते प्रगट कस्युं. पी अत्यंत प्रेम विह्वल थने ते पद्मोत्तर कुमारनुं दृढ यानिंगन क स्वं. पी पद्मोत्तर कुमारें कयुं के अहो ! मने प्रापनो मेलाप थयो, ते घ
SR No.010252
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size66 MB
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