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पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३४३ तेवामां तो त्यां देवलनी बास पास कोइएक देशना पथिकजन आवी न तयां. अने तेय पण रात्रि रहेवानो त्यांज निश्चय कस्यो. पडी त्यां ते सर्व पांथजनो एकगं था परस्पर केटलीएक नूतकालनी वातो करवा लाग्यां, ते वातोने गिरिसुंदर कुमार कान दर देवालयमां सूतो सूतो सांजव्या करे ने. त्यां कोइएक महसेन नामें पांथजन , ते बोल्यो, के हे नाश्यो! तमें परस्पर जे वातो करो बो, ते सर्व वातो ग गुजरी करो बो, ते करतां जो आंखनी जोयेलीज वातो करता हो, तो केवू सारूं कहेवाय ? अने ते नूतकालनी वातो करवानुं तमारे लॅप्रयोजन ? कारण के तेवी प्राचीनकालनी वातो तो खोटी पण होय . माटे तमें सर्व जो बीजी वातो करवी बंध राखो, तो में जे हाल एक प्रत्यक्ष वात जोडे, ते दुं कहूं. ते सांनती सदु कोइ कहेवा लाग्या के हा, त्यारे तेवीवात जो होय तो जरूर कहो.त्यारें ते कहेवा लाग्यो. के एक दिवस हुँ देशकौतुकोने जोवा माटे मारे घेरथी निकल्यो, ते अनेक देशोमां फखो. त्यां नवां नवां कौतुको जोतो जोतो अचानक कोइएक उजड गामनी पासें घणाक व्याघ्रादिक हिंसक जी वोथी युक्त एवी महोटी अटवी हती तेमां आवी पज्यो. तेवामां तो त्यां अत्यंत रूपवान एवा कोइएक राजपुत्रनो मने सथवारो मल्यो. त्यारें तो हुँ निर्नय थश्ने ते राजकुमारनी साथै चाल्यो. चालता चालतां एक उजड नगर आव्युं, ते नगर एवं हतुं के जेमां पशु, पदी के मनुष्य को पण रहेतुंज न हतुं. पनी ए नगरमां अमें चाव्या, त्यां चालता चालतां एक मनोहर पण उजड, एवो राजमहेल दीठो. ते राजमहेलने जोइने विचार कस्यो के अहो ! आ केवो सुशोनित राजमहेल , चालो उपर चडी जोश्य ? एम विचारी अमो तुरत तेनी उपर चडी गया, अने त्यां जबेगा. तेवामां मने तो निश आववा मांझी, तेथी ढुं तो सूइ गयो अने मारी साथें आवेलो जे राजकुमार हतो, ते तो मारी पासें जागतो रही, मारुं रक्षण करवा बेठो. तेवामां तो झुं बन्युं ? के जेनुं नूखथी पाटा जेवू पेट थइ गयुं वे एवो, अने अति जयंकर एवो एक सिंह आव्यो. बावीने अमारी पासें ननो रही ते जागता एवा राजकुमारने मनुष्य वाणीथी क हेवा लाग्यो, के हे कुमार ! हुँ घणा दिवसनो दुधातुर मुं. कारण के था नगरनी निकटना वनने विषे मारा उदरपोषण माटे में घणाक प्राणीयो