________________
पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. २३ए करे . तो पण जो ते पापी होय , तो तेने कोइ स्थलथी फुटेली एक कोडी पण मलती नथी. माटे लोनरूप समुश्मा मूबेलो प्राणी, राजा धिराज कदाचित् होय, तो पण ते दुःखीज जाणवो. अने संतोषी जे जे, ते धनवानना मस्तक पर पग दश्ने सुखें करी सुश् रहे . जुन. जो लोनी जीव जे , ते कदाचित् कोटिपति होय तो पण ते दरीडीज जाणवो, केम के तेनाथी दान अने नोग ए बे वानां थइ शकतां नथी. अने संतोषरूप अमृतरसनो पीनारो प्राणी निर्धन अने तुच होय , तो पण कोटिध्वज समान बे. अने जे इव्यवान् थश्ने अनिमानथी कोइ सामुं न जोतां के वल नचुंज जोया करे , ते दरिडी थाय , अने नीची दृष्टियी विनयवान थइने निरचिमान पणाथी सदु सामुं जोवे , ते गरीब दे, तो पण ते ईश्वर थाय . लोनी पुरुषने कोइ एकवस्तु सो जोजन दूर होय ले, तो पण ते दूर देवाती नथी. अने संतोषी जे जे, तेने हस्त ग्राह्य जेवी वस्तु होय, ते पण सोजोजन दूर जेव। थाय .ते माटे हे नश्क जनो! सर्वथा परिग्रह त्याग करवाने जो शक्तिमान न थवाय, तो पण विशेषे करी तमारे
वा परिमाण परिग्रह राखवानी तो जरूरज जे.जे पोतानी इबाने रोधीन शके ने लोनें करीव्याकुलांतःकरणयुक्त थको व्यवानने घेर श्वाननी पेठे दो ड्याज करे . अने घणाक्लेशोने अने छेवट मरणने पामे . या प्रकारनो मु निना मुखथी उपदेश सांजलीने गुणाकर जे हतो तेणें तो सम्यक्त्वप्रतिपत्ति पुरःसर स्वेवाप्रमाणे परिग्रह परिमाण व्रत,हर्षे करी अंगीकार कयुं अने श्रदा रहित एवो तेनो मित्र जे गणधर हतो तेणे व्रत वगेरे सर्व खोटुं मानी परि ग्रह परिमाण प्रमुख कांश पण स्वीकापुंज नही. ने वली विचारवा लाग्यो के, जे माणास पोतानी लाने कोइ पण कार्यमां रोकी राखे जे अने निवृत्ति परत्व करे , तेने दैव, कांश पण अधिक आपतुं नथी. कारण के तेणेक मज वेच्युं !आ मारो मित्र मूर्ख कहेवो , के पेला मुंमाना खोटा प्रलापथी यथेन, परिग्रहपरिमाणनुं व्रत ल बेठो ? हवे ते पड़ी जावथी ए गुणाकरें अने अनावथी गुणधरें मुनिनुं वंदन कयु.अने तुरत पोत पोताने घेर आव्या.
बीजे दिवसें पोताना मित्र गुणाकरने कह्या विना एकलोज ते गणधर करियाणां नरीने व्यापार करवा माटे चाल्यो, अने परदेशमा वेपार कर वाथी तेने घणोज लान थयो. परंतु संतोष न होवाथी मलेला इव्यथी पण