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पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ३११ जली ब्राह्मणो एकदम खडखड हसीने कहेवा लाग्या के अरे ना ! आ तमारा मिंदडाना त्रण गुणो तो तमें प्रत्यक्ष हजी हमणांज गणाव्या हता, तेमांत्रीजो गुण एम गणाव्यो हतो, के या मार्जार जे नूमिमां वास करी रहेतो होय, ते नूमिनी आसपास बारयोजन पर्यंत सुंदर आवी न शके ? अने हाल कहो बो, के तेनो कान रातमां आधी चंदर खा गयो. माटे तमारो कहेलो एनो त्रीजो गुण क्यां जतो रहा? अने तेनो आ माबो कान करडावाथी ते दूषित . ते सांजली हरिवेग बोल्यो के सांबलो. हे नश्कजनो! आवा महोटा रत्नमां एक दूषण श्राववाथी झुं ते दूषित कहेवाय ? ना नज कहेवाय. अने ते जो एक अल्पदोपथी दूषित , तो तमारा देवमा घणाक दोपोडे, ते बतां तेने तमें देव केम मानो बो? वली
या बीचारा मार्जारमा एक दोष होवाथीकहो बो, के या मिंदडो तो दू पित . या बोलवू तमारुं केवी मोहोटी नूलनरेलुं ? ए सांजली ब्रा ह्मणो क्रोधायमान थइ बोल्या के हे मूर्ख ! अमारा देवमां ते कां दो प होय ? अमारा देव तो निर्दोषज ले ? त्यारे हरिवेग कहे , के हे नट्टो ! सांनलो. ज्यारें तमें कहो बो, के अमारा देव निर्दोष , त्यारे एक वात हुँ पू , तेनो तमो खुलासो करो. के ब्राह्मणने, बालकने, स्त्रीने, गायने जे हणे, तेने केवो कहेवो जोयें ? त्यारे नट्टो बोल्या के ते उष्ट कर्म करनारने तो महा पापिष्टज कहेवो जोश्यें ? तथा तेनुं मुख पण जोवू न जोश्यें ? त्यारे हरिवेग बोल्यो के जे वैश्वानर एवो अग्नि , ते प्रज्ज्व लित कस्यो थको पूर्वोक्त सर्वने बाली नस्मसात् करी नाखे , परंतु तेमां कोइने पण जीवतो मूकतो नथी. तो ते अग्मिने तमें देव बुद्धिथी केम पूजो बो ? वली तमो कहेशो के ते अग्नि ,ते तो तेत्रीश करोड देवताउनु मुख ने, कारण के देवताउनी तृप्ति तो ते वैश्वानर अग्निधारायेंज थाय बे. माटें तेने देव मानी मधु घृतादिक हविथी पूजीयें बै? तो त्यां दुं कहुँ , के ज्यारे ते अग्नि, तेत्रीश कोटि देवता, मुख ले, तेथीज ते देव , तो ते देव थक्ने अ निष्ट, तथा मृतकनुं कलेवर अने बीजी पण अंदर होमेली खराब वस्तुने केम नहाण करी जाय बे ? माटें अपवित्र पदार्थनुं नोजन करनारा देवर्नु पूजन करनारा जे तमो ते तमो पण अपवित्रज तस्या. एमज वली जलने पण कहो बो, के “जल डे, ते विष्णुनी मूर्ति ने.” एम कहीने पाला तेज