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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ ४ व्यवहारदशाकल्पच्छेदसूत्र-इसके दो खण्ड और संपूर्ण मूळ श्लोकसंख्या ६०० है । इस पर मलयगिरि आचार्यने टीका, चूर्णि, भाष्य आदि रचनायें की हैं।
५ पंचकल्पच्छेदसूत्र-इसके १६ अध्ययन और मूळ श्लोकसंख्या ११३३ है । इस पर चूर्णि, दूसरी टीका, भाष्य आदि रचनायें हैं।
६ दशाश्रुतस्कन्धछेदसूत्र-इसकी संपूर्ण श्लोकसंख्या ४२४८ है। इस पर श्रीब्रह्मविरचित टीका मिलती है । इसका आठवां अध्ययन कप सूत्र है जिसकी कलसुबोधिका टीका है।
७ जीतकल्पच्छेदसूत्र-इसकी मूल संख्या १०८ और टीका १२ हजार है । इस पर चूर्णि, भाष्य आदि ग्रंथ हैं। इस पर कई आचार्यों, मुनियों आदिने अपनी २ क्रमशः रचनायें अलग २ बनाई हैं।
चार मूलसूत्र । १ आवश्यकसूत्र-इसकी मूल गाथा १२५ हैं । इन गाथाओं पर हरिभद्रसूरि, भद्रबाहुस्वामी, तिलकाचार्य, अञ्चलगच्छाचार्य, हेमचन्द्राचार्य आदिने टीका, नियुक्ति, चूर्णि, दीपिका आदि अनेक ग्रंथों की रचनायें की हैं जिनकी संपूर्ण श्लोकसंख्या ९८१४६ बतलाई जाती है । इसमें विशेषावश्यकसूत्र का एक विशेष परिकर है। इस पर भी श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, मल्लधारी श्रीहेमचन्द्रसूरि, कोटाचार्य, द्रोणाचार्य आदे की अनेक रचनायें उपलब्ध होती हैं । इसमें पाक्षिकसूत्र, यतिप्रतिक्रमण, दशवैकालिकसूत्र आदि ग्रंथ हैं और इन ग्रंथों के उपर भी कई टीका और चूर्णि आदि मिलते हैं ।
दशवैकालिकसूत्र -सय्यंभवसूरि का बनाया हुआ ७०० मूळ श्लोकों का है। इस पर तिलकाचार्य, हरिभद्राचार्य, मलयगिरि, सोमसुंदरसूरि, समयसुंदर उपाध्याय आदि कई विद्वानों के अलग २ ग्रंथों की रचनायें मिलती हैं । इन ग्रंथों में इन्होंने विशेष रूप से अच्छा प्रकाश डाला है।
२ पिण्डनियुक्ति-भद्रबाहुस्वामी के द्वारा इसकी रचना हुई है। इसके मूळ श्लोक ७०० हैं । इस पर मलयगिरि, वीरगणि, महासूरि आदि कई विद्वान् आचार्यों की टीका, लघुवृत्ति आदि हजारों श्लोकों में रचनायें पाई जाती हैं। विद्वानों का कथन है कि इस पर १९२०० श्लोकों की रचनायें हैं।
३ ओघनियुक्ति-यह ग्रंथ भी श्रीभद्रबाहुस्वामी के द्वारा निर्माण किया हुआ है। इसके मूळ श्लोक ११७० हैं। इस पर द्रोणाचार्य की टीका, भाष्य, चूर्णि आदि १८४५० श्लोक. प्रमाणों में मिलते हैं।