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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ
हिन्दी जैन शताब्दी से लेकर बीसवीं शताब्दी तक की तेरह शताब्दियों में जितने कवियोंने अपनी अमर कृतियों से हिन्दी साहित्य को पुष्ट किया है उन में स्वयंभू सब से बड़े कवि हैं । मैं ऐसा लिखने की हिम्मत नहीं करता, यदि हिन्दी के चोटी के कवियों ने स्वयंभू 'रामायण' के उद्धरणों को सुनकर यह राय प्रकट न की होती । " स्वयंभू ने पउमचरिउ ( रामायण ), रिट्ठणेमि चरिउ, पंचमीचरिउ आदि रचनाओं द्वारा चरित्रकारों की जिस साहित्यिक परपरा को अंकुरित किया उसका सीधा विकास हमें तुलसी के 'रामचरितमानस' और सूफियों के लौकिक प्रेम कथानकों में मिलता है । लोक भाषा में रचित इन चरित काव्यों के विषय में डा. हजारीप्रसाद द्विवेदी का यह कथन समीचीन ही है " इन चरित काव्यों के अध्ययन से परवर्तीकाल के हिन्दी साहित्य के कथानकों, कथानक रूढियों, काव्य रूपों, कविप्रसिद्धियों, छंदयोजना, वर्णनशैली, वस्तुविलास कविकौशल आदि की कहानी बहुत स्पष्ट हो जाती है । इस लिये इन काव्यों से हिन्दी साहित्य के विकास के अध्ययन में बहुत महत्वपूर्ण सहायता प्राप्त होती है ।
कथाप्रधान जैन साहित्य
लोकजीवन में अपने विचारों के प्रतिपादन के लिये जैन साहित्य के मनीषी कलाकाने स्फुटगीतों और मुक्तक छंदों की अपेक्षा कथाकाव्यों का अधिक सहारा लिया है । सत्य तो यह है कि जैन साहित्य में उसका कथा साहित्य बहुत ही पुष्ट अंग है । यह साहित्य गद्य और पद्य दोनों रूपों में बहुत ही विशाल परिमाण में रचा गया है । उस में एक ओर जहां संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश के 'विशाल चरितकाव्य हैं, जिनका सृजन अनेक लोकरंजक, ऐतिहासिक, पौराणिक और काल्पनिक कथाओं के आधार पर हुआ है, वहां दूसरी ओर प्राकृत के आगम ग्रंथों की टीका-टिप्पणियों, निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, तथा जैनाचार्योद्वारा रचित विविध कथाकोषों में नीति और उपदेशपूर्ण लघु कथाऐं भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं । ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक दृष्टियों से इस कथा साहित्य की भाव भूमि बड़ी उदात्त और गहन है ।
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ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करें तो जैन कथा ग्रंथ अपनी परिधि में भारतीय इतिहास की अमूल्य सम्पत्ति को संजोए हुये हैं । पुराण ग्रंथों को तो वैसे भी इतिहास की कोटि में रखा जाता है। तीर्थकरों, चक्रवर्ती सम्राटों को लेकर अनेक पुराणों की रचना हुई है। महाभारत के समान हरिवंश पुराण और पाण्डव पुराण तथा रामायण के कथानक के समान पद्मपुराण जैसे बड़े पुराण ग्रंथ भारतीय पौराणिक साहित्य को जैन साहित्य