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भीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ हिन्दी जैन नैणसी की ख्यात का कुछ अंश मूल रूप से पं० रामकर्णजी आसोपाने दो भागो में प्रकाशित किया है। अभी उसका एक सुन्दर संस्करण राजस्थान पुरातत्व मंदिर से छपना प्रारंभ हुआ है जिसका संपादन श्री बदरीप्रसाद साकरिया कर रहे हैं। राठोड़ अमरसिंह की बात भी समकालीन जैन-यतिलिखित मेरे संग्रह में है। जिसे मैंने भारतीय विद्या में प्रकाशित कर दिया है । राठोड़ों की ख्यात और वंशावलिये जैनयतियों द्वारा लिखित प्राप्त हैं । जोधपुर के गांवों की उपज संबंधी हकीकत जयपुर के श्रीपूज्य जी के पास है, जिसकी प्रतिलिपि मेरे संग्रह में है। बाड़मेर के यति इन्द्रचन्द्रजी के संग्रह में बेगड़गच्छीय जिनसमुद्रसरि रचित राठोड़-वंशावली मैंने देखी थी जो अब नष्ट हो गई होगी। खुमाणरासो, गोराबादल चौपाई, जैतचंद्र प्रबंध चौपाई आदि ग्रंथ विशुद्ध ऐतिहासिक तो नहीं, पर लोकापवाद के आधार से रचित अर्घ ऐतिहासिक हैं। कर्मचन्द्र वंश प्रबंध चौपाई से बीकानेर के इतिहास की कई बातें विदित होती हैं। जैनाचायों, श्रावको, तीथों, देश नगर वर्णन संबंधी ग्रन्थों में सार्वजनिक अनेक ऐतिहासिक तथ्य सम्मिलित हैं । जैन गच्छों की पट्टावलिये भी राजस्थानी भाषा में लिखी गई हैं जो ऐतिहासिक और भाषा की दृष्टि से बड़े महत्व की हैं। जैनेतर ख्यात ऐतिहासिक बातें आदि की अनेक प्रतियें कई जनभंडारों में प्राप्त हैं।
१० सुभाषित सूक्तियां:- राजस्थानी साहित्य में दोहों की संख्या भी बहुत है। दसवीस हजार दोहे इकट्ठे करने में कुछ भी कठिनाई नहीं होगी। ये दोहे मुक्तक छंद हैं। इनमें से बहुत से तो अत्यन्त लोकप्रिय हैं । जो राजस्थान के जन-जन के मुख व हृदय में रमे हुए हैं । कहावतों के तौर पर उनका उपयोग पद-पद पर किया जाता है। ये दोहे सभी रसों के हैं
और सब के लिये समान रूप से उपयोगी हैं। जैन विद्वानों ने भी प्रासंगिक, विविध विषयक राजस्थानी सैकड़ों दोहे बनाये हैं। केवल जसराज ( जिनहर्ष) के ही ३०० से अधिक दोहे हमने संग्रहीत किये हैं । इसी प्रकार ज्ञानसारजी आदि और कई कवियों के दोहे उपलब्ध हैं।
११ बुद्धिवर्धक-हीयाली, गूढ़े, आदि सैंकड़ों की संख्या में जैन विद्वानों के रचित प्राप्त हैं । जो बृद्धि की परीक्षा लेते हुए उसको बढ़ाते हैं। पचासेक-हीयालियों का मैंने सुन्दर संग्रह कर रखा है। जिनमें से कुछेक को बहुत वर्ष पूर्व · जैन-ज्योति' में प्रकाशित की थीं।
१२ विनोदात्मकः-ऊंदररासो, मोकणरासो, माखियों रो कजियो, जती जंग, आदि बहुत सी विनोदात्मक रचनाएं प्राप्त है।
१३ कुव्यसननिवारका-भांगराम, अमलरास, वृद्धविवाह निवारक बूढारास, सप्तव्यसन निषेधगीत, तमाखूनिषेध, तमाखूपरिहारगीत आदि बहुत से कुव्यसनों के निवारक साहित्य प्राप्त है।