________________
७०६
भीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ हिन्दी जैन भारतभर के किसी जैनभंडार में उपलब्ध नहीं हैं। इनमें केवल जैन ग्रंथ ही नहीं,भगवद्गीता, सांख्यसप्तति, न्यायवार्तिक, जय देव छंद, लीलावती प्राकृत कथा एवं अन्य पचासेक जैनेतर ग्रंथों की प्राचीनतम ताड़पत्रीय प्रतियें सुरक्षित हैं। प्रतियों की संख्या की बहुलता की दृष्टि से बीकानेर के जैन ज्ञानभंडार भी उल्लेख योग्य हैं। इन भंडारों में ४०००० प्रतिये हैं। एक भ्रान्त धारणा का उन्मूल:
कई विद्वानों की यह भ्रान्त धारणा है कि जैन साहित्य जैन धर्म से ही संबंधित है, वह सर्वजनोपयोगी साहित्य नहीं है; पर यह धारणा नितान्त भ्रमपूर्ण है । वास्तव में जैनसाहित्य की जानकारी के अभाव में ही उन्होंने यह धारणा बना रखी है । इसीलिये वे जैन साहित्य के अध्ययन से उदासीन रह कर मिलनेवाले महान् लाभ से वंचित रह जाते हैं। उदाहरणार्थःजैन विद्वानों ने ऐतिहासिक साहित्य भी बहुत लिखा है । उसकी जानकारी के बिना भारतीय इतिहास सर्वांगपूर्ण लिखा जाना असंभव है। राजस्थान के इतिहास में ही लीजिये, यहां के इतिहास से संबंधित जैन ग्रन्थ अनेक हैं। उनके सम्यक् अनुशीलन के अभाव में बहुतसी जानकारी अपूर्ण एवं भ्रान्त रह जाती है। इसी प्रकार गुजरात के इतिहास के सब से अधिक साधन तो जैन विद्वानों के रचित ऐतिहासिक प्रबन्ध आदि ग्रन्थ ही हैं। राजस्थान के प्राचीन ग्रामों की प्राचीन शौध जब भी की जायगी, जैन-विद्वानों के यात्रावर्णन, विहार, तीर्थयात्रा, धर्मप्रचार आदि के उल्लेखवाले ग्रन्थों का उपयोग बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। राजस्थानी जैनसाहित्य में भी ऐसे अनेक ग्रन्थ हैं जो जैनधर्म के किसी भी विषय से संबंधित न होकर सर्व जनोपयोगी दृष्टि से लिखे गये हैं। उदाहरणार्थ दो चार ग्रन्थों का निर्देश ही यहां काफी होगा। कवि दलपतविजयने 'खुमाणरासो' नामक ग्रंथ रचा। उसमें उदयपुर के महाराणाओं का यथाश्रुत इतिवृत्त संकलित है। इसमें जैनों का संबंध कुछ भी नहीं है। इसी प्रकार हेमरत्न और लब्धोदय आदिने गोरा-बादल और पद्मावती आख्यान पर रास बनाये हैं जोकि सब के लिये समान उपयोगी हैं। जैन कवि कुशल. लाभने 'पिंगलशिरोमणि', राजसोमने 'दोहाचन्द्रिका' आदि राजस्थानी छंद ग्रंथ बनाए हैं। कुशललाभने तो जिसका जैनों के लिये कुछ भी उपयोग नहीं है वैसा ' देवी सातमी' प्रन्थ बनाया है। इसी प्रकार सोमसुन्दर नामक यतिने जैनेतर पुराणों में उल्लिखित ' एकादशी कथा' पर काव्य बनाया है। विद्या कुशल एवं चारित्रधर्मने राजस्थानी भाषा में सुन्दर रामायण बनाई है जिसमें उन्होंने जैनाचार्यों द्वारा लिखित रामचरित का उपयोग न कर वाल्मिकि रामायण का आधार लिया है। अर्थात् जैन रामकथा की उपेक्षा करके सर्वजन