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साहित्य
राजस्थानी जैनसाहित्य । वीसलदेव रासो की उपलब्ध समस्त प्रतियाँ जैन यतियों की लिखित ही हैं। जैनेतर रचित एक भी प्रति कहीं प्राप्त नहीं है । इसी प्रकार हमारे संग्रह में बीकानेर के राव जैतसी संबंधी ऐतिहासिक ग्रंथ 'जैतसी रासो' की दो प्रतियां उपलब्ध हैं, जबकि इस ग्रंथ की अन्य एक भी प्रति जैतसी के वंशज अनूपसिंहजी की विशिष्ट लाइब्रेरी में भी प्राप्त नहीं है ।
चारण सांकुर कवि रचित 'बच्छावत-वंशावली', चारण रतनू कृष्णदास रचित 'रासा विलास' नाम के ऐतिहासिक काव्य एवं हमीर रचित राजस्थानी का छंद ग्रंथ 'लखपत गुण पिंगल '। इसी प्रकार ऐसी अनेक जैनेतर राजस्थानी ग्रंथों की प्रतिये जैन-भण्डारों में ही सुरक्षित मिलती हैं। जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंहजी का मन्त्री लघराज रचित कई ग्रन्थों की प्रतियें हाल ही जैन भण्डारों से प्राप्त हुई हैं। जिनकी अन्य प्रतियें जोधपुर के राजकीय संग्रहालय आदि में कहीं नहीं हैं । भागवत के राजस्थानी-गद्यानुवाद की सचित्र प्रति भी जैन यति द्वारा लिखित हमारे संग्रह में प्राप्त है। ___कवि हालू रचित ' वैतालपच्चीसी', विप्र वस्ता रचित — विक्रम परकायप्रवेश' कथा, दुरह रचित 'विरहण चरित चौपाई ', लाल रचित 'विक्रमादित्य चौपाई ' आदि और भी अनेक जैनेतर राजस्थानी ग्रन्थ जैन भण्डारों में ही प्राप्त हैं । प्राचीन चारण आदि कवियों के पद्यों के संरक्षण का श्रेय भी जैन विद्वानों को ही है । प्रवन्धचिन्तामणि, कुमारपालप्रतिबोध, उपदेशतरंगिणी आदि ऐतिहासिक प्रबन्ध ग्रंथों में वे प्राचीन पद्य उद्धृत पाये जाते हैं।
जैन विद्वानों की साहित्य के सृजन एवं संरक्षण में सदा से बड़ी उदार नीति रही है। वे बड़े साहित्यप्रेमी होते थे। जैन-जनेतर के भेदभाव के बिना कोई भी उपयोगी ग्रन्थ किसी भी भाषा में किसी भी विषय का रचा गया हो, उसे वे कहीं देख लेते तो प्रतिलिपि करके अपने भण्डारों में रख लेते थे। स्वयं विद्वान् होने के कारण वे उसकी जी जान से रक्षा करते थे। इसी कारण जब कि जैनेतर संग्रहालय बहुत थोड़े से ही सुरक्षित मिलते हैं, तब जैन ज्ञानभंडार सैंकड़ों की संख्या में यत्र-तत्र सुरक्षित अवस्था में प्राप्त हैं । राजस्थान को ही लीजिये-यहां अब भी लक्षाधिक हस्तलिखित प्रतियें जैन ज्ञानभंडारों में सुरक्षित हैं। जिनमें जैसलमेर का भंडार ताडपत्रीय प्राचीन प्रतियों एवं अन्य ग्रंथों के संग्रह के रूप में विश्वविदित है । इस भंडार में १० वीं शताब्दी की ताडपत्रीय एवं १३ वीं शताब्दी की कागज पर लिखित प्रतिये प्राप्त हैं । इतनी प्राचीन ताडपत्रीय व कागज पर लिखी हुई प्रतियें
१. दे. मरुभारती