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भीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ हिन्दी जैन प्रियता को प्राप्त हुआ है । उसकी लोकप्रियता का सब से प्रबल प्रमाण यह है कि आज से दो हजार वर्ष पूर्व जैन कथाकारोंने जिन कहानियों का प्रणयन किया वे आज भी लोककथाओं के रूप में भारत के सभी प्रदेशों में प्रचलित हैं । जैन आगमों में राजा श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार के बुद्धिचातुर्य की जो कथा है वह अपने उसी रूप में हरियाण के लोकसाहित्य में अढाई द्वैत की कथा के नाम से प्रसिद्ध है और दक्षिण के जैमिनी स्टूडियो ने इस कथा के आधार पर मंगला चित्रपट का निर्माण किया है। इसी प्रकार शेर और खरगोश की कहानी जिस में खरगोश शेर को कुए में अन्य शेर की परछाई दिखाकर ठगता है। भिखारी का सपना जिस में स्वप्न में हवाई किल्ला बनाता हुआ भिखारी अपनी एक मात्र सम्पति दूध की हांडी को फोड़ डालता है । नील सियार की कहानी जिस में सियार अपने को नील रंग में रंगकर जंगलका राजा बन बैठता है । बन्दर और क्या की कहानी जिस में बन्दर वया के उपदेशों को अनसुना कर के उसके घोंसले को नष्ट करडालता है आदि अनेक कहानियां आज भी सर्वसाधारण में प्रचलित हैं। ये ही कहानियां जैन साहित्य के अतिरिक्त हमें बौद्ध जातकों, पंचतंत्र, हितोपदेश, कथासरित्सागर आदि जैनेतर कथासाहित्य में भी प्राप्त होती हैं । इसका अभिप्राय यही है कि जैन कथा साहित्य सार्वभौमिकता की व्यापक भावभूमि पर खड़ा हुआ है । हम उसे किसी समुदाय या धर्मचिशेष की संकुचित सीमाओं में नहीं बांध सकते और न उसका क्षेत्र किसी एक देश या युग तक ही सीमित है । उसका विश्वव्यापी महत्व है और युगविशेष से उपर उठ कर वह विश्वसाहित्य की चिरन्तन और शाश्वत धरोहर है । समग्र मानवजाति की वह अमूल्य सम्पत्ति है और यह प्रसन्नता की बात है कि इसी सार्वजनीन और सार्वभौमिक रूप में जैन कथा साहित्य की अमूल्य सम्पत्ति का उपयोग भी हुआ है । जैन कथा साहित्य न केवल भारती कथा साहित्य का जनक रहा है, अपितु सम्पूर्ण विश्व कथा साहित्य को उसने प्रेरणा दी है। भारत की सीमाओंको लांघकर जैन कथाएं अरब, चीन, लंका, योरोप आदि देश-देशान्तरों में पहुंची हैं और अपने मूल स्थान की भांति वहां भी लोकप्रिय हुई हैं। योरोप में प्रचलित अनेक कथाएं जैन कथाओं से अद्भुत साम्य रखती हैं। उदाहरण के लिये 'नायाधम्मकहा' की चावल के पांच दाने की कथा कुछ बदले हुये रूप में ईसाइयों के धर्म ग्रंथ 'बाइबिल' में प्राप्त होती है। चारुदत्त की कथा का कुछ अंश जहाँ वह बकरे की खाल में बन्द होकर रत्नदीप पर जाता है सिन्दवाद जहाजी की कहानी से पूर्णतः मिलताजुलता है। प्रसिद्ध योरोपीय विद्वान वानी ने कथाकोश की भूमिका में यह स्पष्ट कर दिया है कि विश्व कथाओं का फलस्रोत जैनों का कथा साहित्य ही है, क्योंकि जैन कथा