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साहित्य
जैन कथा-साहित्य । मूल चेतना है। इसी मूल चेतना के आधार पर जैन कथाकारों ने अपने कथानकों में ऐसी घटनाओं को जन्म दिया है जिन के द्वारा साधारण मनुष्यों के हृदयों में पापकर्मों की ओर से अरुचि हो तथा शुभ कार्यों के प्रति लग्न हो। ऐसे सत् असत् पात्रों की योजना की है जिनके चरित्र एक ओर बुराई से घृणा करना सिखाते हैं और दूसरी ओर आदर्श जीवन की ओर प्रेरित करते हैं, क्योंकि जैन कथा साहित्य की प्रायः सभी कहानियों में बुरे पात्रों का अन्त दुखात्मक होता है और सत् पात्र अनेक कष्ट सहन करते हुये अन्त में विजयी होते हैं और सुख के भागी वनते हैं। इस प्रकार मूल रूप से सम्पूर्ण जैन कथासाहित्य आदर्शोन्मुखी है। यह आदर्शवादिता जैन कथासाहित्य की ही विशेषता नहीं है, वरन् सम्पूर्ण भारतीय साहित्य ही आदर्शवादिता की सुरभि से सुवासित है। भारतीय साहित्य के सभी प्रबंध काव्य, चाहे वे संस्कृत के हों अथवा हिन्दी के, आदर्श मूलक हैं । संस्कृत नाटकों का पाश्चात्य नाटकों के विपरीत सुखान्त होना आदर्शवादी भावना का ही परिचायक है। आदर्शोन्मुखी जैन कथासाहित्यने भी इसी गौरवमयी भारतीय परम्परा को अधिक सजगता के साथ सुरक्षित बनाए रखा है।
आदर्शोन्मुखी होते हुये भी जैन कथा साहित्य जीवन के यथार्थ धरातल पर टिका हुआ है । यह धरातण ऐतिहासिक घटनाओं और सामाजिक जीवन की विविध भंगिमाओं से निर्मित हुआ है । ऐतिहासिक कथानक प्रायः राजकुलों से ही सम्बन्धित हैं और यह स्वाभाविक भी है; परन्तु सामाजिक जीवन से जो कथानक चुने गये हैं वे सभी वर्गों के जीवन से सम्बन्ध रखते हैं । इन सामाजिक कथानकों का भावक्षेत्र इतना विस्तृत है कि न केवल मानव समुदाय, अपितु पशु-पक्षियों को उसमें स्थान मिला है। फिर भी जैन कथा साहित्य में वणिक समुदाय को अधिक प्रमुखता मिली है । संभवतः इस कारण इस समाज में ही जैन धर्म का अधिक प्रचार होता है। कथानकों के रूप में जिन घटना व्यापारों की योजना की गई है वे इतनी अमानवीय और अतिरंजनापूर्ण नहीं हैं कि उन पर अविश्वास किया जा सके। वैसे अनेक कहानियों में विद्याधरों का आ टपकना, विद्याओं की सिद्धि और मंत्र के चमत्कार से अद्भुत घटनाओं की सृष्टि आदि अभौतिक और अमानवीय तत्व मिल सकते हैं, किन्तु जिन कहानियों में ऐसी अलौकिक बातें नहीं है वे कहानियां विशुद्ध यथार्थ की दीप्ति से दीपित हैं और पूर्णरूप से हमें अपने जीवन की ही चिरपरिचित घटनाऐं जान पड़ती हैं।
रचना-विधान की दृष्टि से ये कथानक सर्वथा इति वृतात्मक हैं । उनकी गति में अधिक जटिलता नहीं है । बड़ी कहानियों में अवश्य कथानक अनेक भाव-चेतनाओं को