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सच्चा रहबर मुनशी फतह महम्मदखाँ वकील, निम्बाहेड़ा । दुनियां में कई मजहब चालू हैं और उनके पैरो भी लाखों की तादाद में । हर मजहब में अपने आईन पर सख्ती के साथ पाबन्दी करानेवाले कुछ लोग होते हैं जो हकीकतन बहुत बुजुर्ग, सीधे, सच्चे, नेक और रहमदिल परहेजगार होते हैं। अला हाजल कयास जैन मजहब में भी एक पाक इन्सान राजेन्द्रसूरि गुजरे हैं जो सही माना में फकीर थे। बाद तह. सीले इरमदीन व दुनयवी, फजीलत उन के सुपुर्द हुई और लाखों आदमी उनके पैरो हुए जो आज तक मौजूद हैं।
अच्छे लोग अच्छाई में और भले भलाई में ही अपनी जिन्दगी गुजारते हैं । आपके वाअज दिलचस्प और जूद-असर होते थे जिनको मरूलूक ने सुनकर अमल किया और सुधार भी किया। इतने पर भी तसल्ली नहीं हुई, वह समझते थे कि जिन्दगी चन्द रोजा है
और इसके साथ नसीहत खत्म हो जायगी। लिहाजा अपने खयालात का इज्हार किताबों के जरिये शुरु किया जो रहती दुनियां तक कायम रहकर मख्लूक की भलाई कर सकेगा और हर मुश्किल को आसान बनाने में कारगर साबित होगा। मौसूफ ने तकरीबन ६१ किताबें तस्नीफ की जो अपनी नोइयत में मुफीद और ठोस साबित हुई । इन किताबों के पढने से मौसूफ की सचाई, दरियादिली, अखलास, अखलाक, रहमदिली, मुन्सिफ मिजाजी और इस्तकलाल का खुद ब खुद पता लग जाता है । इन किताबों के मिन्जुमला एक किताब लगत मोसूमा 'श्री अभिधान राजेन्द्र बृहद् विश्वकोष ' तो इतना मकबूल हुवा कि जिसकी शोहरत हिन्दुस्तान में ही नहीं बल्कि गैर मुमालिक के उलमा में भी जोरों से है। इस में प्राकृत जबान का तर्जुमा संस्कृत में किया गया है । इस किताब के लिखने में मौसूफ को कितनी तकलीफ व महनत करनी पडी होगी इसका अन्दाजा अहले नजर खुद लगा सकते हैं । वैसे इसकी जखामत व अल्फाज की तादाद से भी वाजे है । जैन मझहब में अहिंसा धर्म पर सब से ज्यादा जोर दिया गया है लिहाजा मैं समझता हूं कि मौसूफ ने इन किताबों की तस्नीफ इसी नजरिये फरमाई है कि जिससे हर इन्सान अपनी मुश्किलात का सही रास्ता निकाल सके । जब कोई मुसनिक किसी मुकाम पर लिखते-लिखते अटक जाता है तो उसको इन्तिहासे ज्यादा तकलीफ और बेचेनी महसूस होती है और उस वक्त तक उन तकलीफ में मुक्तिला रहता है जब