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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-प्रथ जैनधर्म की प्राचीनता से उपस्थित किया है । महीका (6) सेमेटिक धर्मों पर व्रात्य धर्म का गहरा प्रभाव है । ईसाई
और मुसलमान धर्म में व्रात्यधर्म के अहिंसादि व्रतों की उपासना का उल्लेख ही व्रात्य प्रभाव को स्पष्ट भी कर रहा है।
संक्षेप में व्रात्य धर्म के व्यापक अर्थ के अन्तर्गत ही सभी धर्म समाविष्ट हो गये हैं। जैन धर्म की अहिंसा से पुराण, बौद्धों का भागवत और वैष्णवों का प्रादुर्भाव हुआ है। जैन धर्म की समता और प्रेम से ईसाई और मुसलमान धर्म का अवतार हुआ है। जैन धर्म के सदाचार से कनफ्यूसियस और दान को लेकर पारसी धर्म का अवतार हुआ है । कहने का तात्पर्य इतना ही है कि व्रात्य धर्म का संसार के सब धर्मों पर प्रभाव पड़ा है और अहिंसा की प्रेरणा इसी धर्म से सबको प्राप्त हुई है।