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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-प्रथ जैनधर्म की प्राचीनता उनकी प्रतिष्ठा करवाई । टोड के अनुसार कुंभलमेर का मंदिर राजा सम्प्रति के द्वारा बनाया हुआ है । वास्तव में यह विचार गलत है। यह मंदिर करीब १३ वीं शताब्दी का है और बनावट की दृष्टि से आबू के मंदिरों से मिलता-जुलता है। यह अपूर्ण दशा में ही छोड़ दिया गया है । नन्दलाई* के शिलालेख के अनुसार वि. सं. १६८६ में उस स्थान के संघने राजा सम्पति द्वारा बनाये हुए मंदिर का पुनः निर्माण किया । इसके अतिरिक्त सम्पति ने जैनधर्म के प्रचार के लिए अन्य उपायों का भी प्रयोग किया। उसने यात्रा के लिए संघ निकाले । आर्यसुहस्थि की संरक्षता में जैनधर्म के प्रचार के लिए एक सभा बुलाई गई । उसने धर्मप्रचार करने के लिए स्थान-स्थान पर धार्मिक आचार्यों को भेजा ।
पश्चिमी भारत के संबन्ध में यूनानियों के विचार:--यूनानी लेखकों के द्वारा भी पश्चिमी भारत के सम्बन्ध में अनेक बातों का पता चलता है। उनके अनुसार यहां पर अनेक नग्न साधु भ्रमण करते थे जिनको वे Gymnosophists (जिम्नोसोफिस्ट ) के नाम से पुकारते थे। ये साधु अनेक यातनाओं को सहन करते थे। समाधिमरण के द्वारा मृत्यु को प्राप्त होते थे । समाज में इनका स्थान बहुत ऊंचा था। इनके साथ स्त्रियां संयम से रह कर के दर्शन तथा धर्म का अध्ययन करती थीं। प्रायः ब्राह्मण स्त्रियों को धार्मिक संघ में नहीं रखते । इस कारण बहुत संभव है कि ये स्त्रियां जैन संघ की भिक्षुणियां हों । इनमें जातिपाति का कोई प्रश्न न था । चरित्र को उच्च स्थान दिया जाता था। ये स्तूपों की पूजा करते थे। इन सब बातों से यह ऐसा प्रतीत होता है कि यूनानियों के आगमन के समय पश्चिमी भारत में जैनधर्म प्रचलित था ।
शकों के समय जैनधर्मः-शकों के शासनकाल में भी जैनधर्म का उत्थान हुआ। इस समय कालकाचार्य नाम के जैन साधुने सौराष्ट्र, अवन्ति और राजस्थान के पश्चिमी भाग में भ्रमण किया और जैनधर्म के बारे में लोगों को बतलाया । कालकाचार्य की बहन का नाम सरस्वती था। वह भी साध्वी के रूप में धर्मप्रचार का कार्य करती थी। उसकी सौन्दर्यता पर लालायित हो कर गर्धभिल नाम के उज्जैन के राजाने बलात्कार करना चाहा । कालकाचार्य क्रोधित हो कर पश्चिम में गया तथा वहां के शक राजा को अपनी ज्योतिष विद्या से
६. Annals and Antiquities of Rajasthan II vol; p. 721-23. * नडूलाई या फिर नारदपुरी चाहिये. संपा. दौलतसिंह लोढ़ा.
७. नाहर, जैन शिलालेख संग्रह, ८५६ । यह शिलालेख बाद का होने के कारण प्रमाण में नहीं लिया जा सकता । ८. अ. Ancient India by Meerindle.
31. Ancient India as described by Megasthanese and Arrian.