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साहित्य
पुराण और काव्य । इन पुराणों की खास विशेषता यह है कि इनमें यद्यपि काव्यशैली का आश्रय लिया गया है तथापि इतिवृत्त की प्रामाणिकता की ओर पर्याप्त दृष्टि रखी गई है। उदाहरण के लिये रामचरित ही ले लीजिये । रामचरित पर प्रकाश डालनेवाला एक ग्रन्थ ' वाल्मिकि रामायण ' है और दूसरा ग्रन्थ रविषेण का 'पद्मवरित' है । दोनों का तुलनात्मक दृष्टिसे अध्ययन कीजिये तो आप को तत्काल इस बात का स्पष्ट अनुभव हो जायगा कि वाल्मिकिने कहां कृत्रिमता लाने का प्रयत्न किया है। श्री डाक्टर हरिसत्य भट्टाचार्य, एम. ए. पी-एच. डी. ने ' पौराणिक जैन इतिहास' शीर्षक से एक लेख ' वर्णी अभिनन्दन ' ग्रन्थ में दिया है। उसमें उन्होंने जगह-जगह घोषित किया है कि अमुक विषय में जैन मान्यता सत्य है । जैनाचार्योंने स्त्री या पुरुष जिसका भी चरित्र-चित्रण किया है वह उस व्यक्ति के अन्तस्तल को सामने लाकर रख देनेवाला है। जैन काव्य--
पुराणों के बाद काव्य का नम्बर आता है। पुराणों में जो बात सीधी-साधी भाषा में कही जाती थी वही काव्यों में अलंकृत भाषा के द्वारा कही जाने लगी। कवि-काल में इस बात की होडसी लग गई कि कौन कवि अपनी रचना में कितने अलंकार ला सकता है। फल. स्वरूप कविता कामिनी नाना अलंकारों से सुसज्जित होकर संसार के सामने प्रकट हुई । कवियों की चातुर्यपूर्ण भाषा के सामने पुराणों की सीधी-साधी भाषा प्रभावहीन हो गई । आचार्य जिनसेन आदि कुछ ऐसे प्रणेता हुए कि जिन्होंने पुराण और काव्य दोनों की शैली अंगीकृत कर अपनी रचनाएं विद्वत्समाज के समक्ष रक्खीं और कुछ ऐसे ग्रन्थकार भी हुये कि जिन्होंने अपने ग्रन्थ काव्य की शैली से ही लिखे । उभय शैली से लिखा हुआ जिनसेनाचार्यका महापुराण है और विशुद्ध काव्य की शली से लिखे हुए वीरनन्दी का चन्द्रप्रभ, हरिचन्द्र का धर्म शर्माभ्युदय, वादिराज का गद्यचिन्तामणि, सोमदेव का यशस्तिलकचम्पू आदि ग्रन्थ हैं।
काव्य के दो भेद हैं १ दृश्य काव्य और २ श्राव्य काव्य । दृश्य काव्य में प्रधान नाटक हैं । इस साहित्य की रचना में भी जैन साहित्यकारोंने पर्याप्त योग दिया है । हस्तिमल्ल के विक्रान्तकौरव, सुभद्राहरण, मैथिली कल्याण और अञ्जनापवनञ्जय प्रसिद्ध नाटक हैं। रामचन्द्रसूरि के भी नलविवाह, सत्यवादी हरिश्चन्द्र, कौमुदीमित्रानन्द, राघवाभ्युदय आदि नाटक बहुत प्रसिद्ध हैं। यशपाल का मोहराजपराजय और वादिचन्द्रसूरि का ज्ञानसूर्योदय नाटक भी अद्भुत ग्रन्थ हैं।
श्राव्य काव्य साहित्य गद्य, पद्य और चम्पू के भेद से तीन प्रकार का है। चरित. काव्य, चित्रकाव्य और दूतकाव्य भी इन्ही के अन्तर्गत हैं । गद्य काज्य में वादी(भE)(द्र)सिंह की