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३८ मुनिसुतपुराण
३९
39
४० वागर्थसंग्रहपुराण
४१ शान्तिनाथपुराण
४२
४३ श्रीपुराण
४४ हरिवंशपुराण
४५ हरिवंशपुराण ( अपभ्रंश )
४६
(,, )
४७
४८
( अपभ्रंश )
४९
99
५०
५१
५२
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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ
ब्रह्म कृष्णदास
भ० सुरेन्द्रकीर्ति कवि परमेष्ठी
59
35
A. जिनदास
१५-१६ शती
भ. यशःकीर्ति
१५०७
१५५२
भ० श्रुतकीर्ति कवि रइधू
१५-१६ शती
भ० धर्मकीर्ति
१६७१
कवि रामचन्द्र
१५६० के पूर्व
6
इनके अतिरिक्त चरित ग्रन्थ हैं जिनकी संख्या पुराणों की संख्या से अधिक है और जिन में ' जिनदत्तचरित ' वराजचरित ' जसहरचरिऊ ' 'णागकुमारचरिऊ' आदि कितने ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सम्मिलित हैं। पुराणों की उक्त सूची में से रविषेण का पद्मपुराण, जिनसेन का महापुराण, गुणभद्र का उत्तरपुराण और पुन्नाटसंघीय जिनसेन का हरिवंशपुराण सर्वश्रेष्ठ पुराण कहे जाते हैं । इनमें पुराण का पूर्ण लक्षण घटित होता है। इनकी रचना पुराण और काव्य दोनों की शैली से की गई है। इनकी अपनी-अपनी विशेषताएं हैं जो अध्ययन के समय पाठक का चित्त अपनी ओर बलात् आकृष्ट कर लेती हैं ।
जैन पुराणों का उद्गम
कवि असग
भ० श्रीभूषण
comme
भ० गुणभद्र
पुन्ना संघीय जिनसेन
स्वयंभूदेव
चतुर्मुखदेव
हिन्दी जैन
आ. जिनसेन के महापुराण
से प्रा० कर्ता
१० वीं शती
१६५९
शक संवत ७०५
यति वृषभाचार्यने ' तिलोयपण्णत्ति' के चतुर्थ अधिकार में तीर्थंकरों के माता-पिता के नाम, जन्मनगरी, पंच कल्याणक तिथि, अन्तराल, आदि कितनी ही आवश्यक वस्तुओं का संकलन किया है । जान पड़ता है कि हमारे वर्तमान पुराणकारोंने उस आधार को दृष्टिगत रख कर पुराणों की रचनाएं की हैं। पुराणों में अधिकतर त्रैशठशलाका पुरुष का चरित्रचित्रण है । प्रसङ्गवश अन्य पुरुषों का भी चरित्र-चित्रण हुआ है ।