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भीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-प्रय हिन्दी १ सनत्कुमार, २ नारसिंह, ३ स्कान्द, ४ शिवधर्म, ५ आश्चर्य, ६ नारदीय, ७ कापिल, ८ वामन, ९ ओशनस, १० ब्रह्माण्ड, ११ वारुण, १२ कालिका, १३ माहेश्वर, १४ साम्ब, १५ सौर, १६ परीशर, १७ मारीच और १८ भार्गव ।
देवी भागवत में उपर्युक्त स्कान्द, वामन, ब्रह्माण्ड, मारीच और भार्गव के स्थान में क्रमशः शिव, मानव, आदित्य, भागवत और वाशिष्ठ इन नामों का उल्लेख आया है।
इन महापुराणों और उपपुराणों के सिवाय अन्य भी गणेश, मौद्गल, देवी, करकी आदि अनेक पुराण उपलब्ध हैं । इन सब के वर्णनीय विषयों का बहुत विस्तार है । कितने ही इतिहासज्ञ लोगों का अभिमत है कि इन आधुनिक पुराणों की रचना प्रायः ईश्वीय सन् ३०० से ८०० के बीच में हुई है।
जैसा कि जैनेतर समाज में पुराणों और उपपुराणों का विभाग मिलता है वैसा जैन समाज में नहीं पाया जाता है । जैन समाज में जो भी पुराण-साहित्य विद्यमान है वह अपने ढंग का निराला है। जहां अन्य पुराणकार इतिवृत्त की यथार्थता सुरक्षित नहीं रख सके हैं वहां जैनपुराणकारोंने इतिवृत्त की यथार्थता को अधिक सुरक्षित रक्खा है । इसलिये आज के निष्पक्ष विद्वानों का यह स्पष्ट मत हो गया है कि हमें प्राकालीन भारतीय परिस्थिति को जानने के लिये जैनपुराणों से-उनके कथाग्रन्थों से जो साहाय्य प्राप्त होता है वह अन्य पुराणों से नहीं।
यहां मैं कुछ दिगम्बर जैन पुराणों की सूची दे रहा है जिससे जैन समाज समझ सके कि अभी हमने कितने चमकते हुए हीरे अंधेरे में छिपाकर रखे हुए हैंपुराण नाम कर्ता
रचना संवत् १ पद्मपुराण-पद्मचरित
रविषेण
७०५ २ महापुराण( आदिपुगण )
जिनसेन
नवीं शती. ३ उत्तरपुराण
गुणभद्र
१० वीं शती ४ अजितपुराण
अरुणमणि
- १७१६ ५ आदिपुराण(कन्नड)
कवि पंप ६ आदिपुराण
भ० चन्द्रकीर्ति
१७ वीं शती
भट्टारक सकलकीर्ति १५ वीं शती ८ उत्तरपुराण ९ कर्णामृतपुराण
केशवसेन
१६८८