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पुराण और काव्य
श्री पनालाल साहित्याचार्य, सागर भारतीय धर्मग्रन्थों में पुराण शब्द का प्रयोग इतिहास के साथ आता है। कितने ही लोगोंने इतिहास और पुराण को पञ्चमवेद माना है । चाणक्यने अपने अर्थशास्त्र में इति. हास की गणना अथर्ववेद में की है और इतिहास में इतिवृत्त, पुराण, आख्यायिका, उदाहरण, धर्मशास्त्र तथा अर्थशास्त्र का समावेश किया है। इससे यह सिद्ध होता है कि इतिहास
और पुराण दोनो ही विभिन्न हैं। इतिवृत्त का उल्लेख समान होने पर भी दोनों अपनी विशेषता रखते हैं । कोषकारोंने पुराण का लक्षण निम्न प्रकार माना हैसर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च । वंशानुचरितश्चेव पुराणं पश्चलक्षणम् ।।
जिस में सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंश परम्पराओं का वर्णन हो वह पुराण है । सर्ग, प्रतिसर्ग आदि पुराण के पांच लक्षण हैं। इतिवृत्त केवल घटित घटनाओं का उल्लेख करता है। परन्तु पुराण महापुरुषों की घटित घटनाओं का उल्लेख करता हुआ उनसे प्राप्य फलाफल पुण्य-पाप का भी वर्णन करता है । तथा साथ ही व्यक्ति के चरित्र-निर्माण की अपेक्षा बीच-बीच में नैतिक और धार्मिक भावनाओं का प्रदर्शन भी करता है। इतिवृत्त में केवल वर्तमानकालिक घटनाओं का उल्लेख रहता है। परन्तु पुराण में नायक के अतीत, अनागत भवों का भी उल्लेख रहता है, और वह इसलिये कि जनसाधारण समझ सके कि महापुरुष कैसे बना जा सकता है ! अवनत से उन्नत बनने के लिये क्या-क्या त्याग और तपस्याऐं करनी पड़ती हैं। मनुष्य के जीवननिर्माण में पुराण का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है । यही कारण है कि उसमें जनसाधारण की श्रद्धा आज भी यथापूर्व अक्षुण्ण है।
___ जैनेतर समाज का पुराण-साहित्य बहुत विस्तृत है । वहां १८ पुराण माने गये हैं जिनके नाम निम्न प्रकार हैं-१ मत्स्यपुराण, २ मार्कण्डेयपुराण, ३ भागवतपुराण, ४ भविष्यपुराण, ५ ब्रह्माण्डपुराण ६ ब्रह्मवैवर्तपुराण, ७ ब्रामपुराण, ८ वामनपुराण, ९ वराहपुराण, १० विष्णुपुराण, ११ वायु वा शिवपुराण, १२ अग्निपुराण, १३ नारदपुराण, १४ पद्मपुराण, १५ लिङ्गपुराण, १६ गरुडपुराण, १७ कूर्मपुराण और १८ स्कंदपुराण ।
ये अठारह महापुराण कहलाते हैं। इनके सिवाय गरुडपुराण में १८ उपपुराणों का भी उल्लेख आया है जो कि निम्न प्रकार है
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