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" महावीरस्वामी का मुक्ति-काल-निर्णय "
प्रो. सी. डी. चटर्जी, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ। बौद्ध एवं जैन धार्मिक ग्रन्थों में उपलब्ध सामग्री का अध्ययन करने से यह निश्चय. पूर्वक ज्ञात होता है कि मस्करिन गोशाल, महावीर तथा बुद्ध समकालीन थे। किन्तु इन धर्मग्रन्थों में इसकी निश्चित सूचना नहीं मिलती कि उनकी निर्वाण तिथियों में कितने वर्षों का अन्तर था। इस जानकारी के अभाव में उनकी निधन-तिथियों की गणना करना भी अत्यन्त कठिन है। इतना अवश्य निश्चित है कि अजातशत्रु जब मगध के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ तब वे सभी जीवित थे। क्योंकि ' दीघनिकाय' के सामज्यफल सुत्त में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि, अपने पिता की मृत्यु के तुरन्त उपरान्त, संन्यास ग्रहण करने से क्या लाभ हो सकता है, इस सम्बन्ध में अपनी शंकाओं के समाधान के हेतु वह उन सबसे मिला था [ Digha Nikayas, ii, pp. 47-9] । जैनधर्म साहित्य के ' भगवतीसूत्र' से ज्ञात होता है कि महावीर के जीवनकाल में ही मस्करिन गोशाल की मृत्यु श्रावस्ती में हो चुकी थी। आगे दिए गए उद्धरण से ज्ञात होगा कि बुद्ध को पावा में महावीर की मृत्यु का समाचार उनके एक अनुयायी ने दिया था जो उनके देहावसान के समय उद नगर में उपस्थित था। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं कि सर्वप्रथम प्रसिद्ध आजीविक शास्ता मस्करिन गोशाल, उनके उपरान्त महावीर और अन्त में बुद्ध का शरीरान्त हुआ।
'दीपवंस' और 'महावंस' में प्राप्त बौद्धों के प्राचीन विधिविधान सम्बन्धी अनुश्रुतियों से यह ज्ञात होता है कि बुद्ध का देहावसान कुशीनगर, मल्लों की राजधानी में अजातशत्रु के शासन काल के आठवें वर्ष में हुआ था। उस समय अजातशत्रु वज्जियों के प्रदेश को अपने में मिलाने के लिए सैनिक अभियान में व्यस्त था, जैसा कि हमें दीर्घनिकाय के महापरिनिब्बान मुत्त से विदित होता है। अतः हम यह निश्चित रूप से कह सकते हैं कि तीनों समकालीन शास्ताओं की मृत्यु अजातशत्रु के शासनकाल के प्रथम आठ वर्षों में ही हो गई थी।
मस्करिन गोशाल, महावीर तथा बुद्ध के निर्वाण का क्रम तो हम निर्धारित कर चुके हैं, किन्तु उनकी तिथियों का निर्णय करना अत्यन्त कठिन है । यद्यपि उपरोक्त सामग्री
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