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साहित्य हिन्दी और हिन्दी जैन साहित्य ।
६३५ चार उच्च कोटि के साहित्यिक ग्रंथ हैं । विशेष परिचय के लिये, आप पर कई पत्रों में लेख निकल चुके हैं, उन्हें देखिये ।
कविवर भगवतीदास ये कवि भैया भगवतीदास से भिन्न हैं। ये बुड़िया जिल्ला अम्बाला के निवासी अग्रवालवंशीय बंसलगोत्रीय किसनदास के पुत्र थे। इनके पिता किसनदासने चारित्र ग्रहण कर लिया था । पीछे से ये देहली में ही जा कर बस गये थे। अकबर पुत्र सम्राट् जहांगीर उस समय भारत का शासक था। पं. परमानंद जैनशास्त्री के लेखानुसार अभी आप की २३ रचनाओं का पता लग चुका है। आपकी अंतिम रचना ' मृगांकलेखा चरिउ ' बतायी गई है। आपकी रचनाओं में रास और रसक ही अधिक हैं। आपने उक्त रचनाओं को अलगअलग स्थानों पर रचा हैं, जो रचनाओं में दी गई प्रशस्तियों से ज्ञात होता है। रचनायें प्रायः छोटी-छोटी हैं; परन्तु भाषालालित्य और भावों की दृष्टि से उनका महत्व कम नहीं कहा जा सकता। आपकी रचनाओं के नाम देखने से जीवनगत सत्य की ओर हमारा सीधा ध्यान जाता है कि दिन-रात प्रयोग में आनेवाली वस्तुयें भी हमारे शिक्षा की वस्तु हैं-चूनड़ीरास, खिचड़ीरास तथा समाधिरास, चतुर बनजारा आदि । रचना-सौष्ठव भी देखिये।
सोरठा-सुख विलसहि परवीन, दुःख देखहिं ते बावरे ।
मिउ जल छंडे मीन, तड़फि मरहि थलि रेत कह ॥ विशेष परिचय के लिये अनेकान्त वर्ष १०, ४-५ पृ० २०७ देखिये ।
कविवर जटमल नाहर विक्रम की सतरहवीं शताब्दी में कविवर जटमल खड़ी बोली के एक प्रसिद्ध कवि हो गये हैं। आप के पिता धर्मसी लाहोर के निवासी थे और वे ओसवालवंशीय नाहरगोत्रीय थे। आप की ' गोरा बादल की बात' साहित्य-क्षेत्र में बहुत अधिक प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी है। इसके अतिरिक्त आप द्वारा रचित 'प्रेमलता चौपाई, ' 'लाहोर गजल', 'बावनी' और 'स्त्री गजल ' कृतियां हैं । पहिले २ आप के कुल एवं जन्म-स्थान के विषय में हिन्दीविद्वानों को पूरा परिचय नहीं मिल सका था; परन्तु : प्रियलता चौपाई ' और ' लाहोरगजल' के परिचय में आने पर उसकी पूर्ति होगई । 'गोरा बादल की बात' वीररस-प्रधान काव्य है । यह राजस्थानी मिश्रित है। भाषा में ओज और शब्द-गांभीर्य है । ' गोरा बादल की बात' की कई प्रतियां भिन्न २ संवतों की लिखी हुई मिली हैं और उनमें पाठान्तर अथवा पाठभेद भी कई स्थलों पर मिलता है। परन्तु फिर भी एक का उदाहरण देकर उनकी भाषा का ओज पाठकों के समक्ष रखते हैं: