________________
६७८ भीमद् विजयराजेन्द्रसरि-स्मारक-य
हिन्दी जैन में परिणत किया और संस्कृत के सरल छन्दों को प्राकृत भाषा में परिणत किया । सुतरां उनके ये प्रयोग दोनों भाषाओं के लिए एक बड़ी देन सिद्ध हुए । यों तो उन्हें किसी भाषाविशेष के प्रति कोई आग्रह न था, पर जनमन की रुचि के अनुकूल यह प्रयत्न आवश्यक था इससे यह देन अनायास हो गई ।
यहां भारतीय छन्दों के विकासक्रम पर कुछ कह देना उचित होगा । छन्दों का संगीत से बहुत अधिक सम्बन्ध है, क्योंकि वे गाने के लिए ही बनाये गये हैं । गाथा यह सामान्य नाम गानेयोग्य सभी छन्दों का द्योतक है। यदि हम वैदिक छन्दों से लेकर संस्कृत, प्राकृत
और अपभ्रंश भाषाओं के तथा पीछे देशी भाषाओं के छन्दों को विकास की दृष्टि से देखें तो यह बात स्पष्ट हो जायगी। हमारे छन्दज्ञ पूर्वाचार्योंने संगीत के प्रधान तीन तत्त्वों को अपना कर छन्दशास्त्र का बहुत बड़ा विकास किया है। वे तत्त्व हैं-स्वर, वर्ण एवं ताल । (१) स्वर संगीत-उदात्त, अनुदात्त एवं स्वरित आदि स्वरों के मेल से गाये जाते हैं । इस कोटि में वैदिक छन्द अनुष्टुभ् , त्रिष्टुम् आदि आते हैं, जिनका कि पूर्ण विकास सामवेद दिखता है । (२) वर्ण संगीत-संस्कृत साहित्य के अक्षर छन्दों ( वर्ण वृत्तों ) का विकास इस संगीत के सहारे ही हुआ है। वैदिक काल का अन्त होते-होते छन्दों के पाठ में जो मेद दिखाई देते हैं, वे वर्णसंगीत के कारण ही हैं। इसमें अक्षर और उनकी मात्राओं की गणना उदातादि स्वरों से न होकर दूसरे ही प्रकार-मगण आदि और ह्रस्व दीर्घ आदि मात्राओं से होने लगी। इसीसे आलापों के वैविध्य पर ही छन्दों की गति चलने लगी
और इसके फलस्वरूप उपजाति आदि छन्दों का आविर्भाव हुआ। समान अक्षरवाले गेय छन्द हरिणी, शिखरिणी, मन्दाक्रान्ता आदि का नाम संगीत-धनि के अनुकरण पर ही किया गया प्रतीत होता है। ( ३ ) तीसरे प्रकार का संगीत तालसंगीत कहलाता है जो कि बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है । यह संगीत जनप्रिय भाट, चारणों द्वारा वाद्यों के सहारे गाया जाता था। संस्कृत के मात्रा छन्दों का एक विशेष प्रकार वैतालीय छन्द और उसके अनेक भेद-प्रभेद इस संगीत के सहारे ही विकसित हुए हैं । वैतालीय नाम ही इस बात का द्योतक है । वे छन्द वैतालिक-भाट, चारण आदि द्वारा अनेक प्रकार के तालों पर गाये जाते थे। मागधी प्राकृत के वैतालीय छन्दों का नाम मागधिक था जो कि मागध से सम्बंधित थे, और मागध का अर्थ होता है भाट-चारण ।
जो हो, पर इस प्रकार के छन्द तालों की गति पर आश्रित थे और जनसाधारण में बहुत प्रिय थे। और तो और, प्राकृत और अपभ्रंश के छन्दों का विकास एवं नामकरण