________________
साहित्य
हिन्दी और हिन्दी जैन साहित्य । . विजयजी के समान ही कीर्तिशाली और महापण्डित हुआ है। कविवर की अपरिमित रचनाओं को लक्षित करके यह किसीने ठीक ही कहा है-'समयसुन्दररा गीतड़ा, राणा कुंभारा भीतड़ा'। कविवरने लगभग ६० वर्ष निरंतर साहित्य की साधना-उपासना करके वाङ्गमय को जो समृद्ध बनाया है वह जैनक्षेत्र की ही नहीं, भारतीय वाङ्गमय की एक अद्भुत निधि है।
रचना उदाहरण
जउ तूं जलधर तउ हूं मोरा; जउ तू चंद तउ हूं चकोरा । न०।२।
सरणइ राखि, करह करम जोरा, समयसुन्दर कहइ इतना निहोरा नि०३। पृ०२३. अद्भुत भक्ति
क्यों न भये हम मोर विमलगिरि, क्यों न भये हम मोर । क्यों न भये हम शीतल पानी, सींचत तरुवर छोर । अहनिश जिनजी के अंग पखालन, तोड़त करम कठोर ॥ वि०१॥ पृ० ७७. हरि सोदर रमणी सुरभी सिसु, दो मिली चिह्न घरीजह । समयसुंदर कहइ अहनिशि उनके, पद-पंकज प्रणमीजई ॥३॥ पृ० ९७. सूत्र सिद्धान्त वखाण सुणवत, वलि वयराग की वतियां ।
समयसुन्दर कहइ सुगुरु प्रसादइ, दिन-दिन बहु दउलतियां ॥२॥ पृ० ३९०.
आप के रचित गीत-पदादि से कवि का रागज्ञान, अपभ्रंश-हिन्दी-ज्ञानगाम्भीर्य, अलंकार-कोविदता, छंद-नैपुण्य, पद-लालित्य, शब्द-सौष्ठव, शब्द-कौशल, भाषा-सारत्य, कल्पना-चातुर्य एवं उनके संगीत-प्रेम-प्रतिमा के दर्शन हो जाते हैं। वे जैसे जिनेश्वर भक्त हैं, उतने ही उत्कट तीर्थदर्शनाभिलाषी और उतने ही गुरु-भक्त हैं। ये कोमल कान्त पदावलियां कितनी रोचक एवं हृतलस्पर्शी हैं यह तो कोई भी सहज समझ सकता है। आत्मगत सत्यानुभव की वेदिका पर देव-गुरु-तीर्थ के त्रिबिंब को प्रतिष्ठित करके पूजिये तो अवश्य परमपद की प्राप्ति में ये बहुत दूर तक प्रकाश देती रहेगी [समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि] विशेष परिचय के लिये देखिये 'नागरीप्रचारिणी पत्रिका ' वर्ष ५७ अंक १ सं० २००९।
पाण्डे रूपचन्द आप काव्य, व्याकरण के अच्छे विद्वान् और जैन सिद्धान्तों के गंभीर पंडित थे। आप कविता भी अच्छी करते थे। वि. १७ वीं शताब्दी के विद्वानों में आप का नाम विश्रुत था । आप का जन्म अग्रवालवंशीय गर्गगोत्र में भगवानदास की द्वितीय पत्नी चाचो की
८०