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भीमद् विजयराजेन्द्रसरि-स्मारक-प्रथ हिन्दी जैन हिन्दी में रूपांतर विद्वानों द्वारा कर दिया गया है । जैन पुराण साहित्य केवल पौराणिक कथाओं का ही संकलन नहीं है, किन्तु काव्य की दृष्टि से भी उत्तम रचनायें हैं। कितने ही पुराण तो काव्य-चमत्कार की दृष्टि से काफी उत्तम होते हैं । जैन विद्वानों ने हिन्दी पद्य में ही पुराणों की रचनाऐं नहीं की, किन्तु हिन्दी गद्य भाषा में भी इन पुराणों को लिखा हैं और हिन्दी गद्य साहित्य के विकास में पर्याप्त योग दिया है। ब्रह्म जिनदासकृत आदि पुराण, शालि. वाहनकृत हरिवंशपुराण (१६९५) नवलराम द्वारा लिखित वर्द्धमान पुराण ( १८२५) खुशालचन्दकृत पद्मपुराण (१७८३) हरिवंश पुराण (१७८०) व्रतकथाकोश ( १७८३ ) किशनसिंहकृत पुण्याश्रव कथाकोश ( १७७२ ) दौलतरामकृत पुण्याश्रव कथाकोश (१७७३ ) मादिपुराण ( १८२४ ) पद्मपुराण ( १८२३ ) हरिवंशपुराण ( १८२९ ) बुलाखीदासकृत पांडवपुराण (१७५४) भट्टारक विजयकीर्ति का कर्णामृतपुराण (१८२६ ) सेवाराम साह का शान्तिनाथपुराण आदि उत्तम एवं उल्लेखनीय रचनाएं हैं। इसी प्रकार जैन विद्वानों द्वारा लिखा हुआ कथा साहित्य भी कम नहीं है । पंचतन्त्र की कथाओं को तो हिन्दी में रूपान्तर किया ही है, किन्तु स्वतन्त्र रूप से भी उन्होंने सैंकड़ों कथाओं का निर्माण किया है । ये कथायें पुण्याश्रवकथा कोश, व्रतकथा कोश आदि के रूप में जैन समाज में काफी प्रसिद्ध हैं ।
अध्यात्म साहित्य-अध्यात्मवाद जैन साहित्य का प्रमुख अंग रहा है। आचार्य कुन्दकुन्दने सर्वप्रथम प्राकृत भाषा में समयसार एवं षट्पाहुड की रचना करके इस साहित्य की नींव रक्खी थी। इसके पश्चात् तो जैनाचार्योंने इस पर खूब लिखा । हिन्दी भाषा में भी इस साहित्य की कमी नहीं है । योगीन्द्र का परमात्मप्रकाश तथा दोहापाहुड अध्यात्म विषय की उच्चतम रचनाएं हैं । बनारसीदास का समयसार, अध्यात्मबत्तीसी, अध्यात्म फाग, शिवपच्चीसी, रूपचन्द का परमार्थ दोहाशतक तथा अध्यात्म सवैया, भैया भगवतीदास का चेतनकर्मचरित्र, छीहल की बावनी, ब्रह्मअजित की हंसाभावना, दौलतराम की अध्यात्म बारहखड़ी इस साहित्य की उत्कृष्ट कृतियां हैं । जैन विद्वानों द्वारा वर्णित अध्यात्मवाद हमारे समक्ष संसार की वास्तविक स्थिति को प्रकट करता है, जड़ और चेतन की भिन्नता दिख. लाता है । काम, क्रोध, मान और लोभ आदि दशाओं में चेतन की स्थिति कैसी हो जाती है, इसको स्पष्ट रूप में उपस्थित करता है । आत्मा और परमात्मा का क्या संबंध है तथा आत्मा ही परमात्मा बन सकता है इस तथ्य का वर्णन करता है। यही नहीं, वह संसारिक जीवों को जग का रूप बतलाकर पुनीत मार्ग पर चलने का उपदेश देता है । जैन विद्वान् इसमें काफी सफल हुए हैं। उन्होंने मानव को हमेशां ऊंचा उठाने का ही प्रयत्न किया है। सांसारिक वासनाओं एवं सुखविलास में उन्मत्त स्त्री-पुरुषों के भावों और विकारों को अति