________________
६६२
भीमद् विजयराजेन्द्रसरि-स्मारक-ग्रंथ हिन्दी जैन अन्य साहित्य-उक्त साहित्य के अतिरिक्त जैन कवियोंने साहित्य के अन्य अंगों की ओर भी अपनी लेखिनी चलाई है । बनारसीदासने नाममाला हिन्दी में लिख कर हिन्दी कोष की भी बहुत बड़ी आवश्यकता को पूरी किया। उन्हों ने ही अर्द्धकथानक के नाम से अपना आत्मचरित लिख कर हिन्दी साहित्य में आत्मचरित्र न होने के एक दोष को दूर किया। जिससे सारा हिन्दी जगत उनसे उपकृत है । अर्द्ध कथानक अपने ढंग की अकेली ही रचना है जिसमें बनारसीदासने अपने जीवन को वास्तविक रूप में उपस्थित किया है । इसी प्रकार साहित्य के अन्य अंग जैसे पाकशास्त्र, शिल्पशास्त्र आदि पर जैन विद्वानोंने अपनी सफल लेखनी चलाई है।