________________
साहित्य
जैन विद्वानों की हिन्दीसेवा । ( १८१०), लक्ष्मीदास का यशोधर चरित्र ( १७८१ ), कवि वालककृत सीताचरित्र आदि हिन्दी के सुन्दर चरित काव्य हैं जिन्हें महाकाव्यों के समकक्ष में रखा जा सकता हैं। कवि हीरालालकृत चन्द्रप्रभचरित तथा नवलशाहकृत वर्द्धमानचरित भी इसी श्रेणी के काव्य है । प्रबन्ध काव्य की परिभाषा में अधिकांश चरितकाव्य उपयुक्त बैठते हैं । प्रद्युम्न चरित ( १४११ ), जिनदास का जम्बूस्वामी चरित (१५४२), जोधराज का प्रीतिकर चरित्र (१७२१ ) आदि प्रबन्ध काव्य की श्रेष्ठ रचनाएं हैं। इन काव्यों में अपने नायकों का बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया गया है। कहीं २ नगर, वन, पर्वत, युद्ध, जलक्रीडा आदि का भी संक्षिप्त किन्तु सुन्दर वर्णन मिलता है ।
रासा साहित्य-रासा साहित्य जैन विद्वानों को काफी प्रिय रहा है । १३ वीं शताब्दी से ले कर १८ वीं शताब्दी तक इन रासाओं की रचना होती रही। रासा का अर्थ हिन्दी जैन साहित्य में कथा के रूप में वर्णन करना है; किन्तु ये कथा काव्य-चमत्कार सहित कही हुई होती हैं । ये एक प्रकार के खण्ड-काव्य हैं जिन में अपने नायकों के जीवन के किसी भी अंश का उत्तम वर्णन किया गया है। यदि जैन रासाओं की एक सूची तैयार की जावे तो वही काफी विस्तृत होगी । १३ वीं शताब्दी में धर्मसूरिने जम्बूस्वामी रासा तथा विजयसेनरिने रेवंतगिरि रासा को लिख कर हिन्दी भाषा के विकास में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी जोड़ दी। इसी प्रकार अम्बदेव द्वारा रचित संघपति रासा (१४ वीं), विनयपम का गौतम रासा (१५ वीं शताब्दी) हिन्दी साहित्य की उत्तम सम्पत्ति है । १७ वीं शताब्दी में जैन विद्वानोंने सब से अधिक रासा लिखे। ब्रह्मरायमल ने श्रीपालरासा (१६३०)-नेमीश्वररासा (१६१५)प्रद्युम्नरासा (१६२९), कल्याणकीर्ति ने पार्श्वनाथ रासो (१६९७), पांडे जिनदासने जोगी रासो तथा श्रावकाचार रास (१६१५), ब्रह्मज्ञानसागर ने हुन(हनु)मतरासा (१६३०), भुवनकीर्ति ने जीवंधर रास (१६०६) तथा जम्बूस्वामी रास (१६३०), रूपचंदने नेमिनाथ रासो, विद्याभूषण ने भविष्यदत्त रास (१६००), विमलेन्द्र ने विक्रम-चरित रास (१६६९), जयकीर्ति ने अमरदत्त मित्रानन्द रासो, सोमविमलसूरिने श्रेणिक रासो (१६०३) आदि रचनाएँ लिख कर हिन्दी रासा साहित्य का भण्डार भर दिया। ऐसा मालूम पड़ता है कि उस काल में जन-साधारण रासासाहित्य को बड़े चाव से पढ़ते थे। उक्त सभी रासो अपने २ ढंग की उत्तम रचनाएं हैं । इसी प्रकार १८ वीं शताब्दी में भी काफी रासा लिखे गये जो जैन ग्रन्थ भण्डारों में उपलब्ध होते हैं।
पुराण एवं कथा साहित्य-संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश आदि सभी भाषाओं में जैनों ने विशाल पुराण एवं कथा साहित्य लिखा है। इस लिए इन सभी पुराण एवं कथाओं का