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और उसका प्रसार भगवान् महावीर की वास्तविक जन्मभूमि वैशाली। लिच्छवाड़ ( क्षत्रियकुण्ड ) का पता चला, जिसे उसने चट लिच्छवियों के नाती महावीर का जन्मस्थान मान लिया। दिगंबर संघ को नालंदा से सटा हुआ लगभग दो मीलों की दूरी पर एक कुंडलपुर नामक गाँव का पता लगा। फिर पूछना ही क्या है, यही कुंडलपुर महावीर की जन्मभूमि मान लिया गया और यहां भी (लिच्छवाड़ के समान ही ) मंदिर, धर्मशाला आदि का निर्माण हो गया। दोनों जन्म-स्थान चल निकले । वहां तीर्थ-यात्री आने लगे और कुछ लोगों का निहित स्वार्थ सचाई के ऊपर पर्दा डालने लगा। उस समय तक वैशाली को जैन बिलकुल भूल चुके थे। बाहरी आक्रमणों के अतिरिक्त गंडक नदी का अधिक पश्चिम की ओर खिसकना भी एक जबर्दस्त कारण हुआ जिससे वैशाली पहुंचने में कठिनाई हुई होगी। फिर यह जमाना स्थल-व्यापार की अपेक्षा सामुद्रिक व्यापार को अधिक तरजीह देता था । अतएव लाचार हो जैनों ने लिच्छवाड़ और उसके सभीपस्थ प्रामों से ही भगवान् महावीर के जीवन से संबंध रखनेवाली सारी घटनाएँ जोड दी । फलतः क्षत्रियकुंड वहीं स्थापित हो गया । यह स्थान जैन संसार में अब भी इसी नाम से विख्यात है । जब दूर-दूर के जैनों ने इसे अपने तीर्थंकर का जन्म-स्थान मान लिया, तब इसकी समीपस्थ जनता इसे स्वभावतः 'जन्मस्थान' के नाम से जानने लगी। जैनों ने यहां मंदिर बनया दिये हैं और अपने शास्त्रों के अनुसार अन्य स्थानों की कल्पना भी कर ली है। फलतः गर्भकल्याणक और दीक्षाकल्याणक के नामों से प्रसिद्ध दो मंदिर भी बन गये हैं । श्वेतांबर जैनों ने जो कार्य लिच्छवाड़ के लिए किया, वही कार्य दिगंबर जैनों ने कुंडलपुर के लिए किया ।
दो स्थानों का जैनों द्वारा जन्म-स्थान माना जाना स्पष्ट बतलाता है कि मुसलिमकाल में जैन अपनी परंपरा को बिलकुल भूल गये और अज्ञान के गह्वर में पड़ गये। नहीं तो भला कोई बताए कि भगवान् क्या दो स्थानों पर पैदा हुए थे ?
यद्यपि जैन समाज का एक अंश लिच्छवाड़ को भगवान महावीर की जन्मभूमि मानकर वहाँ तीर्थ करने के लिए पहुँचता है, तथापि इसमें ऐसे लोग भी हैं, जो सत्य का ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद असत्य का परित्याग करने में अपनी हीनता या निंदा नहीं मानते । प्रसिद्ध जैन विद्वान् कल्याणविजयजीने ' श्रमण भगवान् महावीर ' नामक ग्रंथ लिखा है जिसमें उन्होंने वैशाली को भगवान महावीर की जन्मभूमि स्वीकार किया है। एक दूसरे जैन विद्वान् श्री विजयेंद्रमूरिने वैशाली नामक अपनी पुस्तक में यही विचार दृढ़ता के साथ रखा है और लिच्छवाड़ के विरुद्ध निम्न लिखित दलीलें पेश की है।
(१) आधुनिक स्थान जिसे क्षत्रियकुंड कहा जाता है और जिसे लिच्छवाड़ के