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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ जैनधर्म की प्राचीनता ____ जो लोग वैशाली को भगवान् महावीर की जन्मभूमि मानते हैं, वे यह नहीं कहते कि खास वैशाली नगर में ही भगवान् उप्तन्न हुए थे। क्षत्रियकुंडग्राम वैशाली के समीप था; अतः क्षत्रियकुंडग्राम में उत्पन्न होने पर भगवान् वैशालिक कहला सकते थे। इसमें किसी प्रकार की असंगति नहीं है । वस्तुतः ‘सूत्रकृतांग' में महावीर को · वेसालिए' कहा गया है। कल्पसूत्र' में वे 'विदेहे, विदेह दिन्ने, विदेहजच्चे, विदेहसुकुमाले' अर्थात् विदेह, विदेहदत्त, विदेहजात्य और विदेहसुकुमार कहे गये हैं। तीस वर्ष विदेह में व्यतीत करने पर उन्होंने प्रव्रज्या ली थी। प्रव्रज्या के बाद उन्होंने बारह वर्षावास वैशाली वाणिज्यग्राम में किये (लिच्छवाड़ में एक भी वर्षावास क्यों न किया, यह रहस्य ही है) वैशाली में जैन अवशेषों के पाये जाने से हमारा पक्ष मजबूत हो जाता है। यही नहीं, गुप्त-काल में वैशाली और कुंड समानार्थक बन गये थे, क्योंकि एक सील पर ' वेशालीनामकुंडे कुमारामात्याधिकरण (स्य)' लिखा है। देश के और कुंडों से इस (क्षत्रियकुंड ) को अलग दिखलाने के लिए ही ऐसा लिखा गया था, इसमें कोई संदेह नहीं ।
___ अब वैशाली जग पड़ी है। सचाई भी तेजी से फैल रही है । वैशाली-संघ ने इस संबंधी साहित्य का प्रकाशन कर अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त कर दिया है । श्वेतांबर और दिगंबर संघों के अनेक सदस्य वैशाली को भगवान महावीर की जन्मभूमि मानने लगे हैं। जन्मभूमि के गांव ( बसुकुंड ) में वैशाली विद्यापीठ की स्थापना हो रही है, जहां प्राकृत, जैन साहित्य और अहिंसा की शिक्षा दी जाएगी। इस संस्था के लिए सेठ शांतिप्रसाद जैन ने सवा छः लाख रूपयों का दान दिया है-पांच लाख प्रारंभ में और पचीस हजार प्रति वर्ष पांच वर्षों तक । शीघ्र ही यहां मंदिर और धर्मशाला का भी निर्माण होगा। और तब वैशाली प्राकृत इंस्टीस्यूट से ज्ञान की जो किरणें फूटेंगी, उनमें अज्ञान का अंघकार नष्ट हो जाएगा। अंधविश्वास को उसमें कोई जगह नहीं मिलेगी और लोग स्पष्ट देख सकेंगे कि विदेह में उप्तन्न वैशालिक भगवान महावीर की वास्तविक जन्मभूमि कहां है।