________________
६०९
तीर्थ-मंदिर
मथुरा की जैन कला। १ तीर्थङ्कर मूर्तियां-जैन देवता — तीर्थकर ' या 'जिन' कहलाते हैं। तीर्थक्कर संख्या में चौवीश हैं । मथुरा कला में आदिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर आदि तीर्थहरों की अनेक मूर्तियां मिली हैं, जो प्रायः पद्मासन में बैठी हैं। कुछ खड़ी हुई (खगासन में ) भी मिली हैं। ऐसी भी कई प्रतिमाएं मिली हैं जिनमें चारों दिशाओं में प्रत्येक ओर एक-एक लीथाईर मूर्ति बनी है । ऐसी प्रतिमाओं को ' सर्वतोभद्रिका या चौमुखा-चतुर्मुखा ' कहते हैं । मथुरा संग्रहालय में बी० १, ६७, बी० ६८ तथा बी० ४ संख्यक सर्वतोभद्रिका प्रतिमाएं विशेष उल्लेखनीय हैं।
२ देवियों की मूर्तियां-जैन देवियों की अनेक मूर्तियां मिली हैं, जो अधिकतर गुप्तकाल तथा मध्यकाल की हैं । इनमें नेमिनाथ की यक्षिणी अंबिका (डी० ७) तथा ऋषभदेव की यक्षिणी चक्रेश्वरी की मूर्ति ( डी० ६) दर्शनीय हैं।
३ अन्य कलाकृतियां-मथुरा में कई कलापूर्ण आयागपट्ट मिले हैं। आयागपट्ट प्रायः वर्गाकार शिलापट्ट होते थे, जो पूजा में प्रयुक्त होते थे। उनके ऊपर तीर्थकर, स्तूप, स्वस्तिक, नंद्यावर्त आदि पूजनीय चिह्न उत्कीर्ण किये जाते थे। मथुरा संग्रहालय में एक सुन्दर आयागपट्ट ( सं० क्यू० २) है, जिसे, उस पर लिखे हुए लेख के अनुसार, लवणशोभिका नामक वेश्या की लड़की वसु ने दान में दिया था। इस आयागपट्ट पर एक विशाल स्तूप का चित्र तथा वेदिकाओं सहित तोरण द्वार बना हुआ है । लखनऊ संग्रहालय में मथुरा आयागपट्टों के कई सुन्दर उदाहरण (सं० जे० २४८, २४९ आदि ) प्रदर्शित हैं । आयागपट्टों के अतिरिक्त अन्य विविध शिलापट्ट तथा वेदिकास्तंभ भी मिले हैं, जिन पर जैन धर्म संबंधी मूर्तियां तथा चिन्ह अंकित हैं। इन कलाकृतियों पर देवता, यक्ष-यक्षी, पुष्पित लतावृक्ष, मीन, मकर, गज, सिंह, वृषभ, मंगलघट, कीर्तिमुख आदि बड़े कलात्मक ढंग से उत्कीर्ण मिलते हैं।
वेदिकास्तम-जैन स्तूपों के चारों ओर कलापूर्ण वेदिका बनाई जाती थी । वेदिकास्तंभों पर अनेक प्रकार के मनोरंजक दृश्य उकेरे हुए मिलते हैं । इन पर मुक्ताग्रथित केशपाश, कर्णकुण्डल, एकावली, गुच्छक हार, केयूर, कटक, मेखला, नूपुर आदि धारण किये हुए स्त्रियों को विविध आकर्षक मुद्राओं में दिखाया गया है । कहीं कोई युवती उद्यान में फूल चुन रही है, कोई कंदुक-क्रीड़ा में लम है (जे० ६१), कोई अशोक वृक्ष को पैर से ताड़ित कर उसे पुष्पित कर रही है (सं० २३२५), या निर्झर में स्नान कर रही है अथवा स्नानोपरान्त तन ढक रही है (जे०१)। किसी के हाथ में वीणा (जे० ६२) और किसी