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साहित्य हिन्दी और हिन्दी जैन साहित्य ।
६२९ महो. समयसुंदर-हिन्दी में फुटकर पदादि के रचयिता, चौवीशीपद-छतीसी गीत आदि। कृष्णदासने वि. सं. १६५१ में 'दुर्जनसालबावनी ' रची। हीरानंद श्रावकने वि. सं. १६६८ में ' अध्यात्मबावनी ' लिखी । खरतरगच्छीय भद्रसेनने वि. सं. १६७५ के लगभग 'चंदनमलयागिरि चौपाई' लिखी।
खरतर शिवनिधानशिष्य कवि मानने 'भाषाकविरसमंजरी ' रची । इनका रचनाकाल वि. सं. १६७०-१६९३ पर्यंत रहा है।
जिनराजसूरि-वि. सं. १६५५ से १७०० तक, रामचरितसम्बंधीपद व अन्यपदादि रचनायें रची।
लोकागच्छीय कवि बालचंद्रने वि. सं. १६८५ में बालचंदबत्तीसी ' रची।
हंसराजने पद्य में ' ज्ञानबावनी' और गद्य में ' द्रव्य-संग्रहटब्बा' रचे । रचनाकाल १७ वीं शताब्दी का अंत ।
उदयराज (खरतर )ने वैद्यविरहिणीप्रबंध ' और करीब ५०० दोहे रचे । रचनाकाल १७ वीं शताब्दी का अन्त ।
जिनरंगसूरिने 'अध्यात्म बावनी' और 'रंगबहोत्तरी ' रची। रचनाकाल सं० १७०० से १७३० पर्यंत ।
विनयसागरने वि. सं. १७०२ में · अनेकार्थनाममाला ' कोष लिखा । हेमसागरने वि. सं. १७०६ में ' छंदमालिका ' रची। आनंदवर्द्धनने कल्याणमंदिरपद व भक्तामरपद । जिनहर्षने वि. सं. १७१४ में 'नंदवहोचरी' और सं. १७३८ में 'जसराजबावनी' रची।
धर्मसिंहने वि. सं. १७२५ में 'धर्मबावनी' लिखी और कई सवैया, पद चौवीसियां रची । रचनाकाल सं० १७१९ से ।
यशोविजय-दिग्पटखंडन, समाधिशतक, समताशतक पदादि । विनयविजयने विनयविलास पदसंग्रह रचे ।
कवि रामचंद्रने हक्कीनगर (सिंध) में सं० १७२० में ' रामविनोद, ' मरोठ (सिंध) में सं० १७२६ में ' वैद्यविनोद ' और मेरा ( सिंध ) में सं० १७२२ में 'सामुद्रिक-भाषा ' नामक ग्रंथ लिखे।
लक्ष्मीवल्लभने वि. सं. १७११ में ' उपदेशवत्रीसी' और 'कालज्ञान', सं. १७२७ में 'भावनाविलास', सं० १७३८ में - सवैया-बावनी,' सं० १७६१ में 'चौवीसी' और सं० १७४७ में ' नवतत्त्व-चौपाई' रची।