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तीर्थ-मंदिर
मथुरा की जैन कला । प्राचीन कवियोंने मनोरंजक ढंगों से इस उत्सव का वर्णन किया है । उत्सव के अलावा उसमें भाग लेनेवाली स्त्री को भी शालभञ्जिका' कहते थे। उद्यानों के अतिरिक्त मंदिरों और स्तूपों में तथा राजा-रईसों के घरों में शृङ्गार और अलंकरण के रूप में शालभञ्जिका-प्रतिमाओं का निर्माण होने लगा।
मथुरा की शालमञ्जिका मूर्तियां कला की अमर कृतियां हैं। इनमें अशोक, चंपक, नागकेसर, कदंब आदि वृक्षों के सहारे खड़ी हुई सन्नतांगी रमणियों के अंग-विन्यासों का मनोहर चित्रण मिलता है । ग्रन्थों में भी शालभञ्जिका मूर्तिकला संबंधी उल्लेख मिलते हैं ।
जैन ग्रंथ ' रायपसेणिय सूत्र ' में विमान के अलंकारिक वर्णन के प्रसंग में अनेक स्थलों पर शालभञ्जिका मूर्तियों का उल्लेख आया है, जो बड़े कलात्मक ढंग की निर्मित थीं।
संगीत तथा अन्य दृश्य-कुषाणकाल में गीत, वाद्य और नृत्य की व्यापकता का पता हमें साहित्यिक ग्रन्थों के अलावा मथुरा के कुछ वेदिका-स्तंभों से भी चलता है । स्त्रीपुरुष सभी संगीत में भाग लेते थे। कई खम्भों पर विविध आभूषणों से अलंकृत नर्तकियां दिखायी गयी हैं । कुछ पर वंशी-वीणा आदि बजाने के तथा संगीत-यात्रोत्सवों के चित्रण हैं।
___ मथुरा की जैन कलाकृतियों पर लोक-जीवन संबंधी अन्य अनेक विषय भी प्राप्त होते हैं । इन्हें देखने से कुषाणकालीन धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति के संबंध में अनेक बातों की जानकारी होती है । एक खम्भे पर ब्रज की एक युवती अपने विशेष पहनावे के साथ दिखायी गयी है । वह सिर पर एक भांड लिये हुई है । संभवतः यह दही बेचनेवाली गोप-वधू की मूर्ति है। कुछ खम्भों पर हाथ में तलवार लिये हुए नटियों के चित्रण मिलते हैं। एक खम्भे पर ईरानी वेष-भूषा में एक स्त्री दिखायी गयी है, जो हाथ में एक दीपक लिए हुए है। प्राचीन रनिवासों में विदेशी परिचारिकाओं के रहने के प्रमाण मिलते हैं । इनमें अंग-रक्षिका यवनियां ( यूनान की स्त्रियां) भी होती थीं । मथुरा के एक खम्भे पर शस्त्र-धारिणी की एक ऐसी मूर्ति मिली है, जिसकी पहिचान सशस्त्रा यवनी से की गयी है ।