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तीर्थक्षेत्र श्रीलक्ष्मणीजी लक्ष्मणीतीर्थोद्धारक व्या० वा० श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश-विनेय मुनि जयंतविजय प्राचीन लक्ष्मणी
विक्रम की सोलहवीं शताब्दी के जिस तीर्थ का हम यहाँ वर्णन करने चले हैं वह लक्ष्मणी तीर्थ है । इस तीर्थ की प्राचीनता कम से कम २००० वर्षों से भी अधिक पूर्वकाल की सिद्ध होती हैं, जिसे हम आगे दिये गये प्रमाण-लेखों से जान सकेंगे।
जब मांडवगढ़ यवनों का समराङ्गण बना था उस वक्त इस बृहत्तीर्थ पर भी यवनोंने हमला किया और मन्दिरादि तोड़े, तब से ही इसके ध्वंस होने का कार्य प्रारंभ हो गया और क्रमशः विक्रमीय १९ वीं शताब्दि में उसका केवल नाममात्र ही अस्तित्व रह गया, और वह भी अपभ्रंश ' लखमणी' हो कर जहाँ पर भील -भिलालों के २०-२५ टापरे ही दृष्टिपथ में आने लगे।
एक समय एक भिलाला कृषिकार के खेत में से सर्वाङ्गसुन्दर ११ जिनप्रतिमाएँ प्राप्त हुई। कुछ दिनों के व्यतीत होने के पश्चात् ११ प्रतिमाजी जहाँ से प्राप्त हुई थीं वहाँ से दो-तीन हाथ की दूरी पर से दो प्रतिमाएँ और निकलीं। एक प्रतिभाजी तो पहले से ही निकले हुए थे. जिन्हें भिलाले लोग अपने इष्टदेव मानकर तेल सिन्दूर से पूजते थे। भूगर्भ से इन निर्गत १४ प्रतिमाओं के नाम व लेख इस प्रकार हैंनं. नाम ऊंचाई इंच नं. नाम
ऊंचाई इंच श्रीपद्मप्रभस्वामी
८ श्रीऋषभदेवजी ... .... १३ २ श्रीआदिनाथजी .... .... २७ ९ श्रीसंभवनाथजी .... .... १०॥ ३ श्रीमहावीरस्वामीजी .... .... ३२ १० श्रीचन्द्रप्रभस्वामीजी .... १३॥ ४ श्रीमल्लीनाथजी ....
११ श्रीअनन्तनाथजी .... .... ५ श्रीनमिनाथजी .... .... २६ १२ श्रीचौमुखजी .... .... १५ ६ श्रीऋषभदेवजी .... .... १३ १३ श्रीअभिनंदनस्वामी (खं.) .... ९॥ ७ श्रीअजितनाथजी .... .... २७ १४ श्रीमहावीरस्वामीजी (खं.).... १० चरमतीर्थाधिपति श्रीमहावीरस्वामीजी की ३२ इंच बड़ी प्रतिमा सर्वाङ्गसुन्दर श्वेतवर्ण
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