________________
और उसका प्रसार महावीरस्वामी का मुक्ति-काल-निर्णय ।
५८१ के आधार पर मस्करिन गोशाल के मृत्यु-काल का निर्धारण असम्भव-प्राय है तथापि अन्य दोनों शास्ताओं के मृत्यु-समय की गणना कुछ अधिक निश्चय के साथ की जा सकती है । प्रस्तुत लेख में एक ऐसे नए दृष्टिकोण से महावीरस्वाभी का निर्वाणकाल निर्धारित करने की चेष्टा की गई जिसकी ओर इतिहासकारों का ध्यान अभी तक नहीं गया है।
हेमचन्द्रसूरि का कथन है:एवं च श्रीमहावीरमुक्तेवर्षशते गते । पञ्चपञ्चाशदधिके चन्द्रगुप्तोऽभवन्नृपः ।।
[Parisishta Parvan, Viii, 339 ) डा० जेकोबीने इस ओर ध्यान आकृष्ट किया है कि हेमचन्द्रसूरिने चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण का जो समय दिया है, अर्थात् महावीर के देहावसान के १५५ वर्षे उपरान्त, उसकी पुष्टि करते हुए भद्रेश्वर ने कहावली में लिखा है “ एवं च महावीरमुत्तिसमयाओ पश्चावण्ण वरिस सए पुछण्णे ( उच्छिण्णे ) नन्दवंसे चन्द्रगुत्तो राया जाउ ति"
अतः स्पष्ट है कि भद्रेश्वर के मतानुसार भी नन्दवंश का उच्छेदन तथा चन्द्रगुप्त का शासनारोहण महावीर के संसार से मुक्ति पाने के १५५ वर्ष उपरान्त हुआ, किन्तु बहु. तेरे जैन ग्रन्थ, जैसे विचार श्रेणी, हरिवंशपुराण, विविधतीर्थकल्प, तीर्थोद्धार प्रकीर्णक तथा त्रैलोक्यप्रज्ञप्ति इस आनुश्रुतिक तिथि को अस्वीकार करते हैं। उनके अनुसार महावीर की मृत्यु चन्द्रगुप्त मौर्य के सत्तारूढ़ होने के २१५ वर्ष पूर्व हो गई थी (पालक के ६० वर्ष + नन्दों के १५५ वर्ष =२१५ वर्ष ) परिशिष्टपर्वन् और कहावली तथा इन ग्रन्थों का रचना-काल आठवीं से चौदहवीं ( १३ वी ) शताब्दी के बीच है।
___ चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण की तिथि ई० पू० ३२४ से पूर्व निर्धारित नहीं की जा सकती । कारण यह है कि ई० पू० ३२६ में या ई० पू० ३२५ के पूर्वार्द्ध में चन्द्रगुप्त सिकन्दर से साधारण व्यक्ति के रूप में मिला था, न कि प्राच्य (Prasioi) और गांग्य (Gangaridai) के राजा के रूप में । अतः हेमचन्द्र और भद्रेश्वर की गणना के अनुसार महावीर का निधन ई० पू० ४७९ ( ई० पू० ३२४+१५५ वर्ष ) से पूर्व सम्भव नहीं।
१ असंभव नहीं। भगवतीसूत्र से वह सुस्पष्ट है। संपा. श्री नाहटाजी।
२ स्वीकृत महावीर निर्वाण संवत् ई० पू० ५२७ में तर्कसंगत शंका है, अगर अजातशत्रुका शासन काल निश्चित और प्रमाणतः मान्य हैं और बुद्धनिर्वाण अजातशत्रु के शासन के आठवें वर्ष में माना गया है। बुद्धनिर्वाण मेरे मतानुसार ई० पू० ४७७ और प्रस्तुत लेखके लेखक के मतानुसार ई. पू. ४८३ है तो शंका यह होती है कि महावीरनिर्वाण और बुद्ध का गृहत्याग एक ही वर्ष में अथवा ५-६ वर्ष के अन्तर मे हये हैं। और यह सिद्ध नहीं हो सकेगा। लेखकने जो नई दृष्टि दी है वह अवश्यमेव गंभीर शोध और चिंतन के साथ विचारणीय एवं मंथनीय है। देखिये प्राग्वाट-इतिहास पृ.६. चरणलेख १।
-संपा० दौलतसिंह कोड़ा।