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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ जैनधर्म की प्राचीनता रोपम इन नामों का ही प्रयोग जैनागमों में मिलता है। लीलावती और अमलसिद्धि में उल्लेखित संख्या नामों से भी पिछले नामों का प्रयोग व्यवहार में नहीं आया ही प्रतीत होता है। अतः ऐसी संख्याओं के नाम केवल गणना की दीर्घता बतलाने के लिए ही लिखे गए मालूम देते हैं।
जैन आगमों में भी एकादश अंग भगवान महावीर कथित-सब से प्राचीन माने जाते हैं, इनमें तीसरे व पांचवें अंगसूत्र स्थानांग, भगवती में नीचे दी जानेवाली कालगणनात्मक संख्याओं का उल्लेख मिलता है। उसके बाद के जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, अनुयोगद्वार, ज्योतिषकरंडक
आदि स्त्रों में भी इन संख्याओं का विवरण प्राप्त होता है । इसी प्रकार दिगम्बर सम्प्रदाय के प्राचीन साहित्य में तिलोयपन्नति आदि ग्रन्थों में इन संख्या नामों का उल्लेख है । यद्यपि इन भिन्न-भिन्न ग्रन्थों में कहीं-कहीं भिन्नता या वैषम्य भी है, जिसका कारण यही हो सकता है कि आगमादि मूल लम्बे काल तक मौखिक रूप में रहे; अतः कुछ संख्याओं के नाम भूल गए व परवर्तित हो गए होंगे। प्रयोग याने व्यवहार में तो उनका प्रचलन था ही नहीं, अत: ऐसा होना स्वाभाविक भी है।
___ भगवती सूत्र के शतक ६ उद्देश ७ व शतक ११ में सुदर्शन शेठ ने भ० महावीरसे वाणिज्य ग्राम के बाहर जब वे पलासक चैत्य में पधारे थे तो पूछा था कि हे भगवन् ! काल कितने प्रकार के होते हैं तो भगवान् महावीर ने उत्तर दिया कि ४ प्रकार के (१) प्रमाणकाल, (२) यथायुर्निवृत्ति काल, (३) मरण काल और (४) अद्धा काल । प्रमाण काल दो प्रकार का-दिवसप्रमाण काल, रात्रिप्रमाण काल । इसमें चार पौरषी यानी प्रहर का दिवस और चार प्रहर की रात्रि होती है । अलग-अलग ऋतुओं आदि में प्रहर छोटा-बड़ा होता है अर्थात् बड़े से बड़े दिन में पौरषी ४१ मुहूर्त की और कम से कम तीन मुहूर्त की होती है, इत्यादि का निरूपण है। यथायुर्निवृत्ति काल-मनुष्य, देव आदि ने जैसे आयुष्य का बन्ध किया उसी प्रकार का पालन करने को कहा गया है। शरीर से जीव के वियोग को मरणकाल कहते है। इन तीनों कालों की तो साधारण व्याख्या बतलाई है । हमें यहां चौथे काल याने अद्धाकाल का ही विशेष निरूपण करना है। उसके सम्बन्ध में बताया गया है कि अद्धाकाल अनेक प्रकार का होता है। काल का सब से छोटा अविभाज्य अंश 'समय' कहलाता है। असंख्यात् समयों की १ आवलिका, संख्यात् आवलिकाओं का एक उश्वास और (अ)संख्यात् आवलिकाओं का ही एक निश्वास होता है । व्याधिरहित जीव का एक श्वास और उश्वास एक 'प्राण' कहलाता है। सात प्राणों का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव, ७७ लवों का एक मुहूर्त, ३७७३ उश्वासों का एक मुहूर्त ( दो घडी=४८ मिंट ) होता है, ३० मुहूर्त का एक अहोरात्र, १५ अहोरात्रों का एक पक्ष, दो पक्षों का एक मास, दो मासों का एक ऋतु, तीन ऋतुओं का एक