________________
५७४
श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ
जैनधर्म की प्राचीनता
' जैन स्रोत ' नामक निबन्ध ' वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ ' में पढ़ना चाहिए । संग्रहणीसूत्र आदि श्वे ० जैन ग्रन्थों में जो आठ प्रकार के गणित का प्रयोग व विवरण मिलता है उसके सम्बन्ध में 'जैन गणितविचार' पुस्तक पठनीय है। संख्या गणित की भाँति माप के परिमाण का भी सुन्दर गणित ' अनुयोगद्वार' आदि जैन ग्रन्थों में मिलता हैं
I
1
अनुयोगद्वार सूत्र में ४ प्रकार के प्रमाण बतलाये हैं: - ( १ ) द्रव्यप्रमाण ( २ ) क्षेत्रप्रमाण ( ३ ) कालप्रमाण (४) भावप्रमाण । द्रव्यप्रमाण दो प्रकार का है- एक प्रदेशनिष्पन्न, द्वितीय विभागनिष्पन्न । एक प्रदेशी परमाणु पुद्गल से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कंध पर्यन्त सर्वप्रदेशनिष्पन्न होता है । विभागनिष्पन्न पाँच प्रकार का है । जैसे कि – ( १ ) मानप्रमाण (२) उन्मानप्रमाण (३) अवमानप्रमाण ( ४ ) गणितप्रमाण ( ५ ) प्रतिमानप्रमाण | मान प्रमाण दो प्रकार का है जैसे कि - धान्यमानप्रमाण और रसमानप्रमाण | और उससे आगे अलग-अलग प्रकार के माप-तौल आदि संख्याओं का गणित का विस्तृत वर्णन है । लेखविस्तारभय से उन्हें यहाँ नहीं दिया जा रहा है। अनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और भांगे आदि का गणित भी जैन ग्रन्थों में मौलिक सा है, जिस से जैन विद्वान् गणित जैसे रूखे क्षेत्र में कितने आगे बढ़े हुए थे प्रतीत होता है । और भारतीय प्राचीन गणित की जो प्राणलियाँ व संज्ञायें आदि थीं जिनका अन्यत्र वर्णन नहीं मिलता और हम भूल से चुके हैंजैनागमों में वह सुरक्षित है - यह बहुत ही महत्त्व की बात है ।
1
कालप्रमाण दो प्रकार का होता है- पल्योपम एवं सागरोपम । पल्योपम तीन प्रकार का होता है, उद्धार पल्योपम, २ अद्धापल्योपम, ३ क्षेत्रपल्योपम । उद्धार पस्योपम दो प्रकार होता है - १ सूक्ष्म उद्धार, २ व्यवहारिक पश्योपम ।
१ व्यवहारिक उद्धारपल्योपम - एक योजना की लम्बाई, चौड़ाई एवं ऊँचाई वाली धान्य भरने की पाली के समान गोलाकार ऐसे एक कुँए की कल्पना की जाय, जिसकी गोल
+ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में योजन का प्रमाग इस प्रकार बतलाया गया है- पुद्गल द्रव्य का सूक्ष्मातिसूक्ष्म अंश परमाणु कहलाता है । अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं का एक व्यवहार परमाणु । अनन्त व्यवहारिक परमाणुओं का एक उष्ण श्रेणिया । क्रमशः इस प्रकार आठ आठ गुण वर्द्धितः - शीत श्रेणिया, उर्ध्वरेणु, त्रसरेणु, रथरेणु, देवगुरू, उत्तरकुरू के युगलियों का बालाम, हरिवर्षरम्यकवर्ष के युगलियों का बालाय, हेमवय ऐरणवय के मनुष्य का बालप्रपूर्ण, महाविदेहक्षेत्र के मनुष्यों का बालाय, भरत ऐरावत क्षेत्र के मनुष्यों का बालाग्र, उनके आठ बालों की एक लीख, फिर क्रम से आठ गुणित यूका, यवमध्य ( उत्सेध ) अंगुल - ६ ( उत्सेध ) अंगुलों का एक पाउ, बाहर अंगुलों का एक बैत, चौवीस अंगुलों का एक हाथ, अड़तालीस अंगुलों की एक कुक्षी, ९६ अंगुलों का एक अक्ष या दंड, धनुष्य, युग्ग, मूसल, नालिका अर्थात् चार हाथों का १ धनुष्य, दो हजार धनुष्यों का एक गाउ ( वर्तमान कोस २ माइल) चार गाउ का एक योजन होता है ।