________________
५६६
श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ जैनधर्म की प्राचीनता (४) पुद्गल और (५) औपचारिक द्रव्य " काल "। इनमें से पुद्गल ही रूपी यानी दृष्टिमान है, बाकी सभी द्रव्य अदृष्टिमान हैं। पुद्गल का सब से छोटा अंश परमाणु कहलाता है । जीव और अजीव के ५ प्रकारों के सम्मिलित रूप को ६ द्रव्यमय जगत बतलाया गया है। द्रव्य मूलतः नित्य हैं, पर पर्याय की दृष्टि से उनमें परिवर्तन होता रहता है। नयापन या पुरानापन का मूल कारण काल है जो भूत, भविष्य, वर्तमान के रूप में प्रसिद्ध है। काल को औपचारिक 'द्रव्य' माना गया है। यद्यपि इसकी गति और प्रभाव बहुत ही व्यापक है। जगत का समस्त व्यवहार उस काल के द्वारा ही होता है । दिन और रात; बाल्य, युवा, वृद्धावस्था और समस्त कार्यों का क्रम काल पर ही आधारित है । ५ द्रव्य समूहात्मक व उपदेशात्मक होने से अस्तिकाय कहलाते हैं। काल एक समयविशेष होने से अस्तिकाय नहीं है । काल के सब से सूक्ष्म अंश एक समय से लगाकर अनन्तकाल तक का विवरण
और उनके मध्यवर्तीय संख्याओं के नाम आदि का जो विवरण जैन आगमों में मिलता है वह पाठकों की जानकारी के लिए नीचे दिया जा रहा है।
जैन दर्शन में कालद्रव्य " समय की सूक्ष्मता" सब से सूक्ष्म अंश 'समय' बतलाया गया है । समय की जैसी सूक्ष्मता जैनागमों में बतलाई गई है वैसी किसी भी दर्शन में नहीं पाई जाती। इस सूक्ष्मता का कुछ आभास उदाहरण द्वारा इस प्रकार व्यक्त किया गया है:
प्रश्न-'शक्ति, सम्पन्न, स्वस्थ और युवावस्थावाला कोई जुलाहे का लड़का एक बारीक पट्ट (साटिका-वस्त्र) का एक हाथ प्रमाण टुकड़ा बहुत शीघ्रता से एक ही झटके से फाड़ डाले तो इस क्रिया में जितना काल लगता है क्या वही समय का प्रमाण है !"
उत्तर- 'नहीं, उतने काल को समय नहीं कह सकते; क्योंकि संख्यात तन्तुओं के इकडे होने पर वह वस्त्र बना है। अतः जब तक उसका पहला तन्तु छिन्न नहीं होगा तबतक दूसरा तन्तु छिन्न नहीं होता । पहला तन्तु एक काल में टूटता है, दूसरा तन्तु दूसरे काल में; इस लिए उस संख्येय तन्तुओं को तोड़ने की क्रियावाला काल समय-संज्ञक नहीं कहा जा सकता।'
प्रश्न-'जितने समय में वह युवा पट्टसाटिका के पहले तन्तु को तोड़ता है क्या उतना काल समय-संज्ञक होता है !"
उत्तर-'नहीं, क्यों कि पट्टसाटिकाका एक तन्तु संख्यात सूक्ष्म रुओं के एकत्रित होने पर बनता है, अतः तन्तु का पहला-ऊपर का रुंआँ जबतक नहीं टूटता तबतक नीचेवाला दूसरा रुंआँ नहीं टूट सकता।'
प्रश्न- तब क्या जितने काल में वह युवा पट्टसाटिका के प्रथम तन्तु के प्रथम रुंयें को तोड़ता है उतना काल समय-संज्ञक हो सकता है!'