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भीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ जैनधर्म की प्राचीनता को आमंत्रित किया । हीरविजयसूरि को उस समय अकबरने जगद्गुरु का पद दिया । उसके पुत्र अमरसिंहने भी जैन मंदिर को दान दिया।
जैनधर्म की प्रतिभा जगतसिंह के राज्य में भी काफी बढ़ी। अनेक मूर्तियों की उसके समय में प्रतिष्ठा की गई। महाराज देवसूरि के गुणों को सुनकर उसने उनको आमंत्रित किया और भव्य स्वागत किया। उनके उपदेशों से प्रभावित होकर वह उनका भक्त हो गया। उसने अपने राज्य में जीवहिंसा पर रोक लगादी। जैनधर्म इनके पश्चात् भी फैलता रहा । महाराणा राजसिंह के मुख्य मन्त्री दयालशाहने राजनगर में एक सुन्दर मंदिर बनवाया ।
डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ में जैनधर्म:-ये तीनों राज्य पहले वागड़देश के नाम से प्रसिद्ध थे । दसवीं शताब्दी में भी इस क्षेत्र में जैनधर्म प्रचलित था, क्योंकि एक दसवीं शताब्दी के शिलालेख में · जयति श्री वागड़ संघ' का उल्लेख आया है। यहां के राजाओं की संरक्षता में जैनधर्म का अधिक प्रचार हुआ । राजाओं के मंत्रियोंने मंदिर बनाये तथा मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई।
डूंगरपुर का प्राचीन नाम गिरिवर था । जयानंद की प्रवासगीतिकात्रय से पता चलता है कि १३७० ई. में यहां पर पाँच जैन मंदिर तथा ५०० जैन घर थे । १४०४ ई. में रावल प्रतापसिंह के मन्त्री प्रहादने जैन मंदिर बनाया। इसके पश्चात् गजपाल के राज्य में भी जैन धर्म बढ़ता चढ़ता रहा। उसके मन्त्री आभाने आँतरी में एक शांतिनाथ का जैन मंदिर बनाया । गजपाल के पश्चात् उसका मन्त्री सोमदास गद्दी पर बैठा। उसके मन्त्री सालाने पीतल की भारी वजन की मूर्तियां डूंगरपुर में तैयार करवा कर के उनकी प्रतिष्ठा आबू के जैन मंदिरो में करवाई । उसने गिरिवर के पार्श्वनाथ के मंदिर का भी पुनरुद्धार करवाया।
प्रतापगढ़ राज्य में भी जैनधर्म का अच्छा प्रभाव रहा। चौदहवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी की अनेक मूर्तियां प्रतिष्ठित की हुई यहां पर मिलती हैं। देवली के १७१५ के शिलालेख से पता चलता है कि इस गांव के तेलियों ने भी महाराजा पृथ्वीसिंह के राज्य में सारैया और जीवराज नाम के महाजनों की प्रार्थना से साल में ४४ दिन के लिए अपने कार्य को बन्द रखने का निश्चय किया। इसी राजा के समय में मल्लिनाथ के मंदिर का निर्माण हुआ।
कोटा राज्य में जैनधर्म-कोटा राज्य में बहुत ही प्राचीन समय से जैनधर्म प्रचलित था । पद्मनंदि ने जम्बूद्वीपपण्णति की रचना बारा में करीब आठवीं शताब्दी में की थी। इस ग्रंथ के अनुसार बारा में अनेक श्रावक तथा जैन मंदिर थे । यहां के राजा का नाम