________________
५५६
भीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-प्रथ जैनधर्म की प्राचीनता अच्छी उन्नति की। सिरोही राज्य के दियाणा ग्राम के शिलालेख से पता चलता है कि वर्द्धमान ने कृष्णराज के समय वीरनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठा की"। यह शिलालेख ऐतिहासिक दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है, क्यों कि यह कृष्णराज के समय को निश्चित करता है । झाड़ोली के शिलालेख से ज्ञात होता है कि परमार राजा धारावर्ष की स्त्री शृंगारदेवी ने ११९७ ई. में यहां के मंदिर को भूमि दान में दी" । १२८८ ई. में महाराजा वीसलदेव और सारंगदेव के समय दत्ताणी के ठाकुर श्री प्रताप और श्री हेमदेव नाम के परमार ठाकुरों ने पार्श्वनाथ के मंदिर को दो खेत दान में दिये"। सूबड़सिंहने इसी मंदिर को धार्मिक उत्सव मनाने के लिए ४०० द्रम दान में दिए”। दियाणा ग्राम के अन्य शिलालेख से ज्ञात होता है कि तेजपाल और उसके मंत्री कूपा ने एक होज बनवा कर महावीर के मंदिर को दान दिया।
___ मालवा के परमार राजाओं ने जैनधर्म के प्रति सहानुभूति दिखलाई। जैसे इनके राज्य में मेवाड़, शिरोही, कोटा और झालावाड़ भी सामिल थे । इस समय इन स्थानों पर जैनधर्म बहुत प्रचलित था, क्यों कि जैन खण्डहर अब भी यहां पर बहुतायत से मिलते हैं। मालवा का राजा नरवर्मन शैव भक्त था, किन्तु जैनधर्म के प्रति भी श्रद्धा रखता था । जब जिनवल्लभसूरि चित्तौड़ में थे तो दक्षिण के दो ब्राह्मण एक समस्या ले कर उसके दरबार में आये। ( कंठे कुठार कमठे ठकार )। उसके दरवार के विद्वान उस समस्या का संतोषप्रद उत्तर न दे सके। अंत में उसने उसको जिनवल्लभसूरि के पास भेजा। उन्होंने उसको तुरंत हल कर दिया । जब जिनबल्लभमूरि धारानगरी आये तो राजा ने उनको अपने निवासस्थान पर आमंत्रित किया और उनके उपदेश सुने । राजा सूरिजी की विद्वत्ता पर प्रभावित होकर उनको तीन गांव या ३०००० हजार द्रम देने को तैयार हुआ। सूरिजी दोनों को लेने के लिए तैयार नहीं हुए। अंत में यह निश्चित हुआ कि चितौड़ के चूंगीघर से वहां के खरतरगच्छ के मंदिरों को दो द्रम प्रतिदिन दिये जाने चाहिए। यह घटना ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्यों कि इससे परमार राज्य का विस्तार तथा मेवाड़ की राजनैतिक स्थिति का पता चलता है।
___ हटुंडी के राठोड़ों के राज्य में जैनधर्म:-हटुंडी में राठोड़ दसवीं शताब्दी में शासन करते थे। ये राजा जैनधर्म के अनुयायी थे। वासुदेवाचार्य के उपदेश से हटुंडी में विदग्धराजने ऋषभदेव का मंदिर बनवाया और भूमि दान में दी। उसके लड़के ममत्त ने
१४. अर्बुदाचल प्रदक्षिणा जैन लेखसंदोह, नं. ३११ १५. राजपूताना म्यूजियम अजमेर की रिपोर्ट १९०९-१० नं. २२ १६-१७. भर्बुदाचल प्रदक्षिणा जैन लेखसंदोह नं. ५५, ४९.