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और उसका प्रसार
प्राचीन जैन साहित्य में मुद्रा संबंधी तथ्य |
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अंगविज्जा ( Angavijja ) से प्राप्त होते हैं। इसके निर्देश के लिए मैं मुनिश्री पुण्यविजयजी का आभारी हूँ । ग्रंथ बिलकुल शुद्ध है । इसमें द्रव्यों और शब्दों को पुंलिंग ( पुण्णाम ), saffron और नपुंसक लिंग के हिसाब के क्रमबद्ध किया गया है जैसा कि व्याकरण के नियमानुसार आवश्यक नहीं था । इसके प्रथम वर्ग में हमें ये पद्य मिलते हैं:सुवण मासको वत्ति तहा रययमासओ । दीणारमासको वत्तितधो णाणं च मासको ।। १८५ ।। कहापणो खत्तपको पुराणो त्ति व जो वदे । सतेरको तितं सर्व्वं पुरणामसममादिसे || १८६ ॥ " ' अंगविज्जा' ९ वाँ अध्याय पुण्णाम-पटल |
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इस प्रकार स्वर्ण मुद्राओं के तारतम्य में सबसे छोटी मुद्रा 'माषक' ( Mashakas ) थी" जिसे ' सुवर्णमाषक ' कहा जाता था और सबसे वडी मुद्रा थी ' सुवर्ण ' । गुप्त सम्राटों की स्वर्णमुद्राओं का निर्देश करने के हेतु इस 'सुवर्ण' का प्रयोग करना मैं उपयुक्त समझता हूँ | रजत मुद्राओं की श्रेणी में सबसे छोटी मुद्रा रजतमाषक ' थी और दीनारमाषक ' रोम के स्वर्ण ' देनारियस ' ( अथवा कुशाण और गुप्तश्रेणी की १२० ग्रेनवाली मुद्राओं) की पंक्ति की सबसे छोटी मुद्रा रही होगी । इसके उपरांत " तधो नाणं च मासको ' ( sk तथा नाणं च माषको ) कथन से साधारणतया लघुतम ताम्र मुद्रा का भान होता है और इसी लिए इसे सिर्फ ' माषक' ही कहा गया है । और तब ' कहापण ' अथवा ' कार्षापण ' का उल्लेख आता है ।
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यहाँ हमें ' खत्तपक ' अर्थात् ' क्षत्रपक४ ' का प्रथम बार उल्लेख मिलता है जो कि स्पष्ट रूप से ( पश्चिमी ) क्षत्रपों के बारे में हैं। अगला शब्द है ' पोराण " ' ( Sk.
२२.
' रौप्य - माषक - श्रेणी की मुद्राओं' के लिए डा० वी० एस० अग्रवाल का पत्र JNSI. Vol. XIII, pp. 164 ff में देखिए । हमारे उपरोक्त ग्रंथ में ' दीनार - माषक ' का उल्लेख महत्वपूर्ण है । २३. ' नाणं' का प्रयोग यहाँ अन्य जैन ग्रंथों की तरह साधारण अर्थ में हुआ है, न कुशाण काल की ताम्रमुद्राओं के अर्थ में, जैसा कि डा. अप्रबाल 'मृच्छकटिक' ( Mrchchhakatika) के एक उद्धरण से प्रकट करते हैं। देखिये - JNSI, Vol. XII. pt. 2, p. 199 ।
२४. यहाँ हमें प्रथम बार क्षत्रपों की मुद्राओं के लिए ' क्षत्रपक' शब्दप्रयोग मिलता है। 'रुद्र दमक' ( Rudradamaka ) का उल्लेख बद्धघोष के ' समन्तपसदिक' में किया गया है, जिसकी श्री सी० डी० चटर्जीने JUPHS. Vol. VI, pp. 156-173, और डा० डी० सी० सरकारने JNSI. Vol. XIII, pt. 2, pp. 187 If में विवेचना की है।
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२५. इसका वजन १६ भाषा ३२ रता अथवा लगभग ५७ मेन है । JNSI, Vol. 11 p. 2.