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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ दर्शन और वेदना के चार भेद
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से वेदना चार प्रकार की होती हैं:१. द्रव्यवेदना-किसी पदार्थ के निमित्त से जो वेदना होती है वह द्रव्यवेदना कही जाती है। २. क्षेत्रवेदना-नरक आदि स्थानविशेष जो वेदना होती है वह क्षेत्रवेदना कही जाती है।
३. कालवेदना-नरकायु आदि जीवनकाल के निमित्त से जो वेदना होती है वह काल. वेदना कही जाती है।
१. भाववेदना-वेदनीय कर्म के उदय से जो वेदना होती है वह भाववेदना कही जाती है। चारों वेदनाएं चौवीस दंडक के समस्त सांसारिक जीवों को होती हैं। (पन० पद ३५) इच्छा या अनिच्छापूर्वक वेदना
वेदना दो प्रकार की हैं-अकाम वेदना, सकाम वेदना । संज्ञी जीव मन के सद्भाव में समर्थ और असंज्ञी जीव मन के अभाव में असमर्थ माने गए हैं, क्योंकि सुखद संयोग पाकर प्रवृत्त होने का और दुःखद प्रसंग पाकर निवृत्त होने का सामर्थ्य केवल संज्ञी जीव में हैं-असंज्ञी जीवों में नहीं। असंज्ञी जीव अकाम वेदनावाले होते हैं और संज्ञी जीव अकामसकाम दोनों वेदनावाले होते हैं। असंज्ञी जीवों की अकाम वेदना
जिस प्रकार निर्मल नेत्रवाला मनुष्य भी दीपक के बिना अंधकार में पड़े हुए पदार्थों को देखता नहीं है अथवा नीचे, ऊपर या सामने पड़े हुए पदार्थों को अवलोकन किए बिना देखता नहीं है । फिर भी अंधेरे में या अकस्मात् सामने पड़ा हुआ इष्ट या अनिष्ट पदार्थ पाकर सुखी या दुःखी होता है। इसी प्रकार कई इच्छाशक्तिसंपन्न संज्ञी जीव भी इच्छा के बिना किसी पदार्थ को प्राप्त नहीं करते हैं। फिर भी अकस्मात् इच्छा के बिना भी इष्ट या अनिष्ट पदार्थ पाकर सुखी या दुःखी होते हैं-यही संज्ञी जीवों की अकाम वेदना है। संबी जीवों की सकाम वेदना
जिस प्रकार कोई भी व्यक्ति समुद्र लांघे बिना समुद्र पार के दृश्य नहीं देख सकता अथवा स्वर्ग में गए बिना स्वर्गीय सुख नहीं पा सकता। फिर भी जिस की समुद्र पार के दृश्य देखने की और स्वर्गीय सुख पाने की तीव्र अभिलाषा है वह व्यक्ति केवल तीव्र संकरस से सुखी या दुःखी होता है। इसी प्रकार कई संज्ञी जीव भी केवल इच्छा से ही सुखी या दुःली होते हैं अर्थात् सकाम वेदनावाले होते हैं। (भग० ० ७, उ०७)