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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ
दर्शन और
आज के भारतीय जीवन, विशेषतया पंजाबी जीवन को देखते हुए भले ही यह बात हमें आश्चर्यजनक प्रतीत हो, परन्तु समस्त भारतीय साहित्य और विदेशी यात्रियों के विशद विवरण से उक्त बात पूर्णतया सिद्ध है । आज के भारतीय जीवन में जितनी अधिक मांसाहार की प्रवृत्ति देखने में आ रही है वह सब मुसलीम और विशेष कर योरोपीय सभ्यता के दुष्प्रभावों का ही फल है ।
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ईसवी सन् से ३०० वर्ष पूर्व भारत में ईसवी सन् ७०० के लगभग आनेवाले चीनी अहिंसात्मक जीवन की पुष्टि की है ।
आनेवाले यूनानी दूत मेगस्थनीज से ले कर यात्री इसिंग तक सभी यात्रियोंने भारत के
इस प्रकार ऊपर के विस्तृत आख्यानों द्वारा यह स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि भारत का मौलिक धर्म अहिंसा, तप, त्याग और संयम रहा है। त्रेतायुग के आरम्भ में हिंसात्मक याज्ञिक क्रिया- व - काण्ड आर्यजन के आगमन के साथ भारत में दाखिल हुआ और द्वापर के आरम्भ तक यहां की अध्यात्म संस्कृति के सम्पर्क से पूर्ण अहिंसात्मक अध्वर यज्ञ के रूप में परिणत हो गया ।