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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ दर्शन और भारतीय संस्कृति के मौलिक आधार
भारतीय संस्कृति के आधार के विषय में उपर्युक्त समन्वय-मूलक दृष्टि का क्षेत्र यद्यपि आज के वैज्ञानिक युग में अत्यधिक व्यापक और विस्तृत हो गया है, तो भी यह दृष्टि नितरां नवीन-कल्पनामूलक है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। भारतवर्ष के ही विद्वानों की परम्परागत प्राचीन मान्यताओं में इस दृष्टि की पुष्टि में हमें पर्याप्त आधार मिल जाता है । उदाहरणार्थ, संस्कृत के ज्ञाताओं से छिपा नहीं है कि वर्तमान पौराणिक हिन्दू धर्म के लिए निगमागमधर्म नाम पंडितों में प्रसिद्ध है । अनेक सुप्रसिद्ध ग्रन्थकारों के लिए, उनकी प्रशंसा के रूप में 'निगमागम-पारावार-पारदृश्या' कहा गया है । इसका अर्थ स्पष्टतः यही है कि परम्परागत पौराणिक हिन्दु धर्म का आधार केवल ' निगम ' या वेद न होकर, 'आगम' भी है । दूसरे शब्दों में वह निगम-आगम-धर्मों का समन्वित रूप है। यहां निगम' का मौलिक अभिप्राय, हमारी सम्मति में, निश्चित या व्यवस्थित वैदिक परम्परा से है, और आगम' का मौलिक अभिप्राय प्राचीनतर प्राग्वैदिक काल से आती हुई वैदिकेतर धार्मिक या सांस्कृतिक परम्परा से है । 'निगमागम-धर्म' की चर्चा हम आगे भी करेंगे, यहां तो हमें केवल यही दिखाना है कि प्राचीन भारतीय विद्वानों की भी अस्पष्ट रूप से यह भावना थी कि भारतीय संस्कृति का रूप समन्वयात्मक है ।
इसके अतिरिक्त साहित्य आदि के स्वतन्त्र साक्ष्य से भी हम इसी परिणाम पर पहुँचते हैं। सबसे पहले हम वैदिक संस्कृति से भी प्राचीनतर प्राग्वैदिक जातियों और उनकी संस्कृति के विषय में ही कुछ साक्ष्य उपस्थित करना चाहते हैं।
वैदिक साहित्य को ही लीजिए । ऋग्वेद में वैदिक देवताओं के प्रति विरोधी भावना रखनेवाले दासों या दस्युओं के लिए स्पष्टतः ' अयज्यवः ' या ' अयज्ञाः ' ( =वैदिक यज्ञ प्रथा को न माननेवाले ), ' अनिन्द्राः ' ( =इन्द्र को न माननेवाले ) कहा गया है । इन्द्र को इन दस्युओं की सैकड़ों ' आयसी पुरः ' ( =लोहमय या लोहवत् दृढ़ पुरियों को ) नाश करनेवाला कहा गया है। ___अथर्ववेद के पृथ्वीसूक्त में - यस्यां पूर्वे पूर्वजना विचक्रिरे यस्यां देवा असुरानभ्यवर्तयन् ” (१२।१५) ( अर्थात् जिस पृथ्वी पर पुराने लोगोंने विभिन्न प्रकार के कार्य किये थे और जिस पर देवताओंने 'असुरों' पर आक्रमण किये थे ) स्पष्टतः प्राग्वैदिक जाति का उल्लेख है । भारतीय सभ्यता की परम्परा में · देवों ' की अपेक्षा 'असुरों' का पूर्ववर्ती होना और प्रमाणों से भी सिद्ध किया जा सकता है । संस्कृत भाषा के कोषों में असुरवाची पूर्वदेवाः ' शब्द से भी यही सिद्ध होता है।