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और जैनाचार्य तीर्थङ्कर और उसकी विशेतायें ।
કરર करता है। जन्म और जरा, विवाह और मरण, रोग और शोक, मोह और क्रोध, लोभ और क्षोभ, मान और माया जैसे रोग बताता है और उन्हें दूर करने का उपाय भी । दुखद जीवन के बन्धन से मुक्ति का मार्ग बतलाता है और सही श्रद्धा, ज्ञान के साथ सही दिशा में चारित्रपालन के लिये भी समझाता है । अवसानकाल में, आयुकर्म के अभाव के कुछ काल पूर्व वह जीवन्मुक्त तेरह गुणस्थानवर्ती तीर्थंकर किसी पुण्य प्रान्त में आत्मिक ध्यान में मग्न होता है और वहीं से ' अ इ उ ऋ ' कहे जाय उतने काल में मोक्ष पालेता है । तीर्थकर जीवात्मा से अन्तरात्मा, अन्तरात्मा से परमात्मा तथा परमात्मा से मुक्तात्मा बनता है और मुक्त आत्मा बन कर, मुक्त जीवन प्राप्त कर वह अलौकिक सुख ही सुख का अनुभव करता रहता है। वह संसार के चल-द्वन्द्वमय प्रपञ्च से सर्वदा को मुक्ति पालेता है । यहीं पर जा कर तीर्थंकर के तीर्थकरत्व की, लक्ष्य की पूर्णता की इतिश्री होती है। तीर्थङ्कर के कल्याणक
तीथकर जीवन में अपना और दूसरों का कल्याण करते हैं, इस में सन्देह के लिये तिलतुष मात्र भी स्थान नहीं। जब साधन तथा साध्य में कोई विशेष अन्तर ही नहीं रहता है, तब ही कल्याणमयी भावना पूर्ण होती है । हां, तो लोक के लिये मंगलमूर्ति सरीखे तीर्थंकर के जीवन की कतिपय क्रियायें कल्याणक कह दी जा तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। कल्याणक का अर्थ हैं-कल्याण करनेवाला व्यक्ति अथवा कार्य । जो अपना और दूसरों का कल्याण कर सके, वह व्यक्ति कल्याणक है और वह कार्य भी, मेरे लेखे, धन्य है जो कल्याण करता है । कारण यह है कि संसार कहीं पर कार्य से प्रभावित होता है और कहीं पर व्यक्तिगत विशेषता से । अतएव विचार के बिन्दु से कल्याणक के क्षेत्र में कार्य और व्यक्ति दोनों का ही समावेश करना समुचित और पूर्ण उपयुक्त होगा।
तीर्थकर के जीवन के कल्याणक कार्यों का स्थूल वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार होगाः (१) गर्मकल्याणक ( २ ) जन्मकल्याणक ( ३) दीक्षा या तप कल्याणक (४) ज्ञान या केवलज्ञान कल्याणक और पांचवाँ मोक्षकल्याणक । चूंकि इन कल्याणकों की परिभाषा, समय, जीवन का यथावश्यक प्रसंगोपात्त कार्यक्रम उनके नाम से ही काफी सुस्पष्ट है, अतएव इस विषय में मौन रहने से भी विषय की हानि नहीं होगी। इन कल्याणकों के ऊपर रूपचंद पाण्डे
आदि कई एक विद्वान् एवं कवियोंने बहुत कुछ लिखा है। तीर्थ के निर्माता तीर्थङ्कर
जिन-जिन जगहों पर तीर्थंकर के चरण पड़ते हैं, जहाँ-जहाँ तीर्थंकर के कल्याणक