________________
मालव-मनीषी श्री प्रभाचन्द्रसूरि
सू. ना. व्यास, उज्जैन विद्वद्वर प्रभाचन्द्रसूरि मालवस्थित धारानगरी के प्रसिद्ध पुरातन पण्डित हो गए हैं। ई. स. ८३८ में प्रसिद्ध जैनाचार्य जिनसेनने अपने 'महापुराण' में इनके विषय में लिखा हैचन्द्रांशु शुभ्रयशसं प्रभा चन्द्रं कविं स्तुवे । कृत्वा चन्द्रोदयं येन शाश्वदाह्लादितं जगत् ॥४७॥
इससे प्रतीत होता है कि प्रभाचन्द्र की कीर्ति चन्द्र की कौमुदी के समान सर्वत्र प्रकाशित हो रही थी। वे उच्च कोटि के पण्डित थे । उन्होंने न्याय-शास्त्र पर महत्वपूर्ण रचना की थी। ई. स. ५१३ के आचार्य माणिक्यनन्दी के ग्रन्थों पर भी इन्होंने टीका लिखी थी। माणिक्यनन्दी और अकलंक आचार्यों का अनुसरण कर प्रभाचन्द्र ने अपना मौलिक न्याय प्रन्थ निर्मित किया था । उसका स्वयं उन्होंने उल्लेख किया है। प्रभाचन्द्रने अपने 'न्यायकुमुदच. न्द्रोदय' में लिखा हैमाणिक्यनन्दिपदxप्रतिमाप्रबोध(क)म् । व्याख्याय बोधनिधिरेष पुनः प्रबन्धः॥
अकलंक के अनुसरण मात्र से कुछ विद्वानों का मत है कि प्रभाचन्द्र इनके शिष्य हैं, परंतु इस शंका का निवारण स्वयं प्रभाचन्द्रने अपने प्रमेयकमलमार्तण्ड' के अंत में किया है
गुरुश्रीनन्दिमाणिक्यो नन्दिवा शेष सज्ञानकः । और श्रीपद्मनन्दिसैद्धान्तशिष्योऽनेकगुणालयः । प्रभाचन्द्र चिरंजीव्यात् रत्ननन्दि पदे रतः ॥
उन्होंने माणिक्यनन्दी और रत्ननन्दी को अपने गुरुस्थान पर माना हैं। इससे अकलंक का गुरु होना सिद्ध नहीं होता।
प्रभाचन्द्र प्रतिभाशाली पण्डित थे। वे धाराधीश्वर भोजके राज्य काल में थे। यह उन्होंने 'प्रमेयकमलमार्तण्ड ' में लिखा भी है।
' इतिश्रीभोजदेवराष्ट्र श्रीमद्धारानिवासिx परमपरमेष्टि प्रणामार्जिxमलपुष्पनिराxतकर्ममलकलंके, श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितेननिखिलंप्र
माणप्रमेयस्वरूपोद्योत परीक्षामुखपदविवृत्तमिति ।' __परंतु यह भोजराज ७ वी ८ वीं शती के थे, ११ वीं शती के भोजराज के समय धारा में अमितगति और मानतुङ्गसूरि विद्यमान थे।
एक विद्वान्ने प्रभाचन्द्र का काल १०५० (ई. स. १११५ ) ठहराया है । अपनी पुष्टि के लिए उन्होंने बतलाया है कि नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती संवत् १०३४ में हुए थे।
(५७)