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और जैनाचार्य
अपभ्रंश साहित्य का मूल्यांकन ।
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शांत रस में । ये कवि शांत और भक्ति को भी रस मानते हैं । रस व्यंजना का ढ़ंग शास्त्रीय होते हुए भी उस में लोकरुचि का प्रभाव है । आ० शुक्लद्वारा निर्दिष्ट प्रेम की चार पद्धतियों से भिन्न पद्धतियां भी उन काव्यों में मिलती हैं। प्रेम वैषम्य है, पर उसका अंत अनिष्ट में परिणत नहीं होता । संभोग श्रृंगार के खुले वर्णन की प्रवृत्ति स्वयंभू की अपेक्षा पुष्पदंत में अधिक है । कामक्रीड़ा शृंगार में आती है। जलक्रीड़ा उसी का अंग है । संस्कृत आलंकारिक भी यही मानते थे । पूर्व राग का वर्णन उम्र और अतिरंजित है । कामदशाऐं भी इसी में आती हैं। विप्रलंभ में इनका उल्लेख नहीं है । प्रयत्न नायक भी करता है और नायिका भी । विचारघर जातियों में यौन संबंध शिथिल हैं। पर मानवी प्रसंग में ये कवि शरीर संबन्ध को बचा लेते हैं । आलोच्य साहित्य में पूर्वराग कई कारणों से उत्पन्न होता है । कई कामदशाएँ ऐसी हैं जिनका साहित्य शास्त्रों में नाम नहीं मिलता । वस्तुतः इन की व्यवस्थित मीमांसा की आवश्यकता है । विप्रलंभ के भी कई कारण हैं । सबसे बड़ी बात यह है कि ये. कवि वियोग के कल्पित कारणों की अपेक्षा, उसके यथार्थ कारणों की कल्पना करते हैं । यहां प्रेम सामाजिक भी और ऐकान्तिक भी । रति के उपादानों की योजना की अपेक्षा ये. कवि परिस्थिति और चेष्टाओं का अधिक वर्णन करते हैं । युद्ध की बहुलता से वीर रस की योजना स्वाभाविक है | उसके कारण हैं- कन्या का उद्धार, अपहरण, स्वयंवर या दिग्विजय । मुख्य युद्धवीर है । धर्मिक साहित्य होने से धर्मवीर, धन-वीर आदि मेदों की कमी नहीं । वर्णन की कई पद्धतियां हैं, शैली में अलंकरण है । युद्धरत पात्रों के वर्णन में रौद्र की व्यंजना है । युद्ध और उपसर्ग के प्रसंग में भयानक आता है । विनाश के दृश्यांकन और विरक्ति उत्पन्न करने में बीभत्स । करुणाभाव अधिक है, पर करुणा के समूचे वेग को आध्यात्मिक साधना में प्रवाहित कर देना इन कवियों की विशेषता है । वात्सल्य की सुंदर व्यंजना इस में है, उसके संयोग वियोग दोनों पक्ष गृहीत हैं, बाल लीला इसी का अंग है । हास्य रस लगभग नहीं जैसा है । अलंकारों में अप० कवि दंडी और भामहसे अनुप्राणित हैं । साहित्यमूलक अलंकार उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक आदि बहुत हैं। ये कवि उपमान के लोप निह्नव आदि में न पड़ कर उसे भावना के सांचे ढाल देते हैं । मूर्त की अपेक्षा अमूर्त उपमान ये अधिक रखते हैं । उपमानों की योजना केवल कवियों के मानसिक पक्ष को ही स्पष्ट नहीं करती, अपितु अन्य सामाजिक और सांस्कृतिक तथ्यों को भी प्रगट करती हैं । उत्प्रेक्षा में भी यही बात है । प्रकृति संबन्धी रूपक विशेष रूप से दृष्टव्य हैं । रूपक स्वयंभू को बहुत पसंद है और उत्पेक्षा पुष्पदंत को, अतिशयोक्ति उतनी लोकप्रिय इन में नहीं । अन्य परम्परागत अलंकारों की भी योजना है । शब्दालंकारों में अनुप्रास, यमक और श्लेष मुख्यता है। उद्दात्मक कथन संदेश रासक है । आध्यात्मिक प्रसंग में प्रतीक शैली भी प्रयुक्त हुई है ।
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