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जैनधर्म की प्राचीनता
तीन धर्मों में एक मात्र
श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक - ग्रंथ मौलाना का है वह साधुओं का नहीं है। जैन, बौद्ध तथा ईसाई इन सर्वोपरि सत्ता श्रमण, साधु और परिष्टों की है। गृहस्थों की नहीं । यही मेद - रेखा आज हमें विश्व के समस्त धर्मों में दिखाई पड़ रही है। चीन और जापान के क्रमशः कन्फ्यूशियस, ताओ तथा शिन्तो धर्मों में भी यही स्थिति है । भारतवर्ष की धार्मिक परम्परा में यही एक मोटा अन्तर है जिसे हम ब्राह्मण तथा श्रमण नाम से पुकारते हैं।
प्राचीनतम धर्म
प्रश्न उठ सकता है कि विश्व के विराट् प्राङ्गण में वैचारिक क्रान्ति के जन्मदाता और आचारिक मानवीय मर्यादाओं के व्यवस्थापक इन धर्मों में प्राचीन कौन हैं ?
यद्यपि प्राचीनता से व्यामोह रखना तथ्यहीन है, क्योंकि श्रेष्ठता और उच्चता प्राचीनता से नहीं आ सकती तो भी ऐतिहासिक दृष्टि से खोज करना बुरा नहीं है, अपितु न्यायसंगत भी है । जैन और वैदिक धर्मों में प्राचीन कौन ?
जब इन दोनों धर्मों में प्राचीनता का प्रश्न उठेगा तो मुझे कहना पड़ेगा कि वेद संसार के समस्त धर्मग्रन्थों से प्राचीन है, वेद में जिन विचारों का और धार्मिक परम्पराओं का उल्लेख हैं वेही प्राचीन हैं और वे वेद से भी प्राचीन हैं। ध्यान रहे कि वेद किसी एक जाति की बपौती नहीं है और न ही वेदों में कोई एक प्रकार की विचार-व्यवस्था है । वेदों से ब्राह्मण धर्म का बोध करना वेदों के विविधमुखी दृष्टिकोणों एवं आर्य-अनार्य ऋषियों के विभिन्न विचारों के प्रति अपमान करना है । क्यों कि वेद भारत की समस्त विभूतियों, सन्तों, ऋषियों और कवियों की पुनीत वाणी का संग्रह है । वेद में यज्ञसमर्थक एवं यज्ञविरोधी मन्त्रों को स्थान दिया गया है। एक देव, बहुदेव और बहुदेवों में एकत्व की प्रतीति का समाधान किया गया है । विभिन्न जातियों के यम, मातरिश्वा, वरुण, वैश्वानर, रुद्र, इन्द्र, आदि विभिन्न देवता हैं; किन्तु वेदों में उन सब का ग्रहण किया गया है । यही कारण है कि भारत में रहनेवाली आर्येतर जाति ने श्रमण विचारधारा में अन्य ग्रन्थ का निर्माण नहीं किया, जब कि सर्व प्रकार के महात्माओं के वचनों का संग्रह ही वेद है । वेद भारत के सम्पूर्ण धर्मों का सांझा ग्रन्थ है । उसका यज्ञ भाग ब्राह्मण है और निवृत्तिपरक त्यागमार्ग अथवा धर्म श्रवणधर्म है | वेदों में दोनों का तर्कसंगत समीकरण है ।
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दो विचारधाराओं का अस्तित्व
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आर्यावर्त और भारत ये दो नाम भी हमारे देश की दो विचारधाराओं के द्योतक है। आर्यावर्त नाम आर्यों ने दिया है। जो पश्चिमी पंजाब और गंगा की घाटी से भारतभूमि पर