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भीमद् विजयराजेन्द्ररि-स्मारक-प्रेथ जिन, जैनागम वस्तुविवरण में यह साहित्य समृद्ध है । देशवर्णन के अन्तर्गत ग्राम, नगर और द्वीपवर्णन की प्रथा प्रायः मिलती है । गोकुल और शराबवस्तियों का भी वर्णन मिलता है । पुष्पदंतने रासलीला और गोपियों की स्वच्छन्द लीला का चित्रण किया है। देशों के भी नाम गिनाने की परम्परा इन काव्यों में है । विवाह वर्णन भी बड़े सजीव हैं । इन में प्रायः मध्यम और श्रेष्ठि वर्ग के विवाहों का रोचक वर्णन है । भोजनवर्णन की प्रवृत्ति भी है। स्वयंवर का वर्णन बहुत है जिन का अंत अधिकतर युद्ध में होता है । कभी कभी वधू को पाने के लिए वर को कठोर परीक्षा भी देनी पड़ती थी। इस में प्रेम-प्रसंगों की अपेक्षा युद्धप्रसंग अधिक हैं। युद्धवर्णन में योधाओं के उल्लासपूर्ण अभियान, आत्मश्लाघा, पति-पत्नी संवाद, गर्वोक्ति आदि का वर्णन रहता है । आतंक का भी चित्रण ये कवि करते हैं, परन्तु टंकार का बड़ा ही प्रभावक वर्णन है । युद्ध में विजय बहुत बार दिव्य शस्त्रों पर अवलंबित रहती है। स्त्रियों की गर्वोक्तियां विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । इस में श्रृंगार और गर्व का मेल समझना चाहिये । युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व दूत द्वारा संधिप्रस्ताव और मैत्री-मंडल का प्राय उल्लेख है । सामूहिक युद्ध की अपेक्षा द्वन्द्वयुद्ध का अधिक महत्व था। गजवर्णन बराबर मिलता है । जलक्रीड़ा का चित्रण अवश्य रहता है । इसमें वसंत या शरद ऋतुयें पृष्टभूमि बन कर आती हैं । स्त्रीवर्णन की तीन विधाएँ हैं-१. शास्त्रीय दृष्टि से, २. प्राकृतिक आधार पर व ३. चरित्र को लेकर । कन्या की अपेक्षा अप० कवि वधू का रूपचित्रण अधिक करते हैं । इन कवियों का सौन्दर्यकाल प्रायः अलंकृत है। फिर भी उसमें बीभत्स और अरुचिकर कल्पनाएँ नहीं हैं। नखशिखवर्णन की अपेक्षा रूप के सामूहिक प्रभाव का ही ये कवि उल्लेख करते हैं । साधारणतया प्रथम दर्शन के बाद ही रूपचित्रण ये कवि नहीं करते। किसी भाव की पृष्ट मूमि के रूप में रूपचित्रण करना इन्हें बहुत पसंद है । नर की अपेक्षा नारी का रूपचित्रण अधिक है । पर उसमें नखशिख-चित्रण भी है और शिखनख भी । नारी के अंगों की उपमा में प्रायः प्रकृति के उपमान ही काम आते हैं । ये कवि नारी और प्रकृति में भेद नहीं करते । वर्णन में उपमा या उत्प्रेक्षा की झड़ी लगा देना साधारण बात है । अतिशयोक्ति भी है, पर कम । पुरुष के वर्णन में शौर्य की व्यंजना है। किसी सुन्दर पुरुष को देख कर स्त्रियों की प्रतिक्रिया का उल्लेख करना इन कवियों की विशेषता है। हिन्दी के कवि तुलसीने रामवनगमन के वर्णन में भी इसी तरह ग्राम-वधुओं का संनिवेश किया है । गर्व की व्यंजना सर्वाधिक है । पात्र द्वारा भावव्यंजना के साथ तथ्य व्यंजना भी अप० चरित काव्यों में खूब है । संवाद शैली इन काव्यों में विशेष रूप से दृष्टव्य है।
अपभ्रंश कवि वैसे तो सभी रसों की योजना करते हैं, परन्तु उनका अंत होता है