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और जैनाचार्य
श्रीआर्यरक्षितसूरि । साथ ही इनके गुरु आर्यरक्षित एवं शेष तीनों शिष्यों के प्रकाण्डपाण्डित्य एवं उनकी तज्जन्य निर्मल यशस्विता का चारों ओर व्यापकरूप से प्रचार तथा प्रसार हो गया।
आचार्य आर्यरक्षितसूरि ने बहुजनहिताय व सुखाय सार्वजनिक हितदृष्टया सबसे उत्तम एवं महान् कार्य यह किया कि उन्होंने दूरदर्शिता से यह जान कर कि वर्तमान के साथ ही भविष्य में भी जैनागमों की गहनता एवं दुसहवृत्ति से असाधारण मेधावी भी एक बार उन्हें समझने में कठिनाई का अनुभव करेगा; इसलिये आगमों को चार अनुयोगों में विभक्त कर दिया। वे यहां तक समझ गये थे कि
___ चतुर्वे कैकसूत्रार्थाख्याने स्यात्कोऽपि न क्षमः ।
-इन विद्याव्यसनी परम मनस्वी चारों शिष्यों में से भी कोई एक-एक सूत्र की व्याख्या करने में पूर्णतया समर्थ न हो सकेगा। ऐसी स्थिति में किसी दूसरे की शक्ति नहीं की विशुद्ध व्याख्या कर उन्हें अपने जीवन में आत्मसात् कर सके।
अतएव - ततोऽनुयोगाँश्चतुरः पार्थक्येन व्यधात् प्रभुः।
इससे पश्चात् आचार्य आर्यरक्षितसूरिने उन आगमों को पृथक् पृथक् चार अनुयोगों में इस प्रकार विभक्त कर दियाः
१ करणचरणानुयोग ३ गणितानुयोग २ धर्मकथानुयोग
४ द्रव्यानुयोग इसके साथ ही आचार्य आर्यरक्षितने अनुयोगद्वारसूत्र की भी रचना की जो कि जैनदर्शन का प्रतिपादक महत्त्वपूर्ण आगम माना जाता है । यह आगम आचार्यप्रवर की दिव्यतम दार्शनिक दृष्टि का परिचायक है।
पार्यरक्षित सूरि के सम्बन्ध में और भी अनेक आदर्श एवं उल्लेखनीय घटनाएँ हैं। उनका विशद परिचय सुप्रसिद्ध जैनाचार्य श्री विजयराजेन्द्रसूरिरचित अभिधानराजेन्द्रकोश के अन्तर्गत अजरक्खिय (आर्यरक्षित ) शब्द की व्याख्या करते हुए उपलब्ध होता है। इसके अतिरिक्त निवृत्तिसूत्र में तो आप का वर्णन है ही।
इस प्रकार मालव प्रदेश के परमप्राचीन नगर दशपुर (मन्दसोर) की अन्यान्य विषयक ऐतिहासिक महत्ता के साथ आचार्यप्रवर आर्यरक्षितसूरि का भी सुदृढ़ सम्बन्ध है, जिस के कारण दशपुर के ऐतिहासिक गौरव की अभिवृद्धि हुई है।
+ इस लेख में दिये गये श्लोक अभिधानराजेन्द्रकोश से उद्धत किये गये हैं।
-लेखक