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और जैनाचार्य लुकाशाह और उनके अनुयायी ।
४७७ पूजक संप्रदाय के विद्वानों द्वारा उनके बतलाये हुए ४५ आगमों में जो स्थान-स्थान पर मूर्ति। पूजा के समर्थक पाठ थे उनको जब दिखाया गया तब उन्होंने कुछ जिनागमों को न मानने का कोई भी कारण मिला या जिनके बिना उनका काम चल सकता था उनकी मान्यता छोड़ दी गयी । १५ आगम में १४ को बाद देकर ३१ की मान्यता हुई और किसीने उनमें भी दो और कम करके २९ ही मान्य रखे ।
ब्रह्मऋषि विरचित जिनप्रतिमास्थापन प्रबन्ध एवं प्रवचनपरीक्षा में २९ आगमों की मान्यता का उल्लेख है, फिर ३ और मान्य किये गये और अब स्थानकवासी व तेरापंथी संप्रदायों में ३२ आगमों की मान्यता है । पर यह कब से प्रारंभ हुई यह अन्वेषणीय है।
___ ब्रह्मर्षि ने अपने ग्रन्थ में ऐसी १०१ बातों का निर्देश किया है जिन्हें २९ सूत्रों को ही मान्य रखनेवालों के लिए मानने का कोई आधार नहीं । बहुत सी युक्तियों और शंकाओं के गीतार्थ बुद्धि से समाधान इस प्रकार की रचनाओं में प्रचुरता से पाये जाते हैं। कब-कब किन-किन कारणों को ले कर सूत्रों की मान्यता का तारतम्य और क्रियाकलापों में भेद-विभेद मा कर नवीन सम्प्रदायों का उद्गम और विकास हुआ! आगम सूत्र एवं पंचानी मान्यता एवं गुरुगम के अभाव में विशृङ्खलता किस प्रकार पनपी ! इन सब बातों का वैज्ञानिक रीति से अध्ययन कर तथ्यों को प्रकाश में लाना परमावश्यक है। आशा है विद्वान लोग आज के युग में उस महाश्रुतसमुद्र में भरे रत्नों से अधिकाधिक लाभ उठाने से वञ्चित नहीं रहेंगे।